वाराणसी। अगर आपके अंदर कुछ कर दिखाने का आत्मविश्वास हो तो कोई भी कठिनाई आपका रास्ता नहीं रोक सकती। बस आपका हौसला हर कठिनाई को हरा सकता है। नवरात्रि के दूसरे दिन हम ऐसी ही नारी शक्ति से परिचित होंगे जिन्होंने अपनी दिव्यांगता को अपनी कामयाबी में रोड़ा बनने नहीं दिया। अपने हौसलों के दम पर कामयाबी के शीर्ष पर पहुंचने वाली राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी संविलयन विद्यालय के दिव्यांग प्रधानाध्यापिका आरती भाटिया इसका जीता जागता उदाहरण हैं। 62 वर्ष की आयु में भी उनका जोश और जज्बा युवाओं जैसा ही है। परिषदीय स्कूलों में बच्चों को शिक्षा देकर उनका जीवन संवारने के साथ आरती बेटियों को हुनरमंद बना रही है। गरीब बच्चों को घर पर बुलाकर निशुल्क शिक्षा देना हो या कोरोना काल में जरूरतमंदों तक राशन पहुंचाना। आरती को शिक्षा के क्षेत्र में साल 2005 में राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिल चुका है। कोरोना काल में आरती ने अपने हाथों से 500 से ज्यादा मास्क और जरूरतमंदों को राशन वितरित किया था। समाज सेवा के साथ-साथ बच्चों को डिजिटल शिक्षा से जोड़कर वे उन्हें शिक्षित बना रही हैं। आरती का कहना है कि यदि दृढ़ निश्चय हो तो एक न एक दिन कामयाबी जरूर मिलती है। अक्सर बेटियों और दिव्यांगों को कमजोर मानकर उनकी उपेक्षा कर दी जाती है। लेकिन यदि उन्हें परिवार और शिक्षकों से सहयोग मिले तो बेटियां किसी भी मुकाम तक पहुंच सकती हैं।
साभार- अमर उजाला
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