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Sunday, October 25, 2020

राष्ट्र–जागरण के अग्रिम मोर्चे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

विजयादशमी संघ स्थापना दिवस के उपलक्ष्य में विशेष

- नरेंद्र सहगल

वर्तमान राजनीतिक परिवर्तन के फलस्वरूप हमारा भारत नए भारतके गौरवशाली स्वरूप की और बढ़ रहा है. गत् 1200 वर्षों की परतंत्रता के कालखण्ड में भारत और भारतीयता की रक्षा के लिए अपना सर्वस्व अर्पण करने वाले करोड़ों भारतीयों का जीवनोद्देश्य साकार रूप ले रहा है. भारत आज पुन: भारतवर्ष (अखंड भारत) बनने के मार्ग पर तेज गति से कदम बढ़ा रहा है. भारत की सर्वांग स्वतंत्रतासर्वांग सुरक्षा और सर्वांग विकास के लिए युद्ध स्तर पर प्रयास हो रहे हैं. वास्तव में यही कार्य संघ सन् 1925 से बिना रुके और बिना झुके कर रहा है. विजयादशमी संघ का स्थापना दिवस है.

अपने स्थापना काल से लेकर आज तक 94 वर्षों के निरंतर और अथक प्रयत्नों के फलस्वरूप राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ राष्ट्र जागरण का एक मौनपरन्तु सशक्त आन्दोलन बन चुका है. प्रखर राष्ट्रवाद की भावना से ओतप्रोत डॉ. केशवराव बलिराम हेडगेवार द्वारा 1925 में विजयादशमी के दिन स्थापित संघ के स्वयंसेवक आज भारत के कोने-कोने में देश-प्रेमसमाज-सेवाहिन्दू-जागरण और राष्ट्रीय चेतना की अलख जगा रहे हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैले विशाल हिन्दू समाजप्रत्येक पंथजाति और वर्ग के अनुयायियों को एक विजयशालिनी शक्ति के रूप में खड़ा करने में संघ ने सफलता प्राप्त की है.

इस शक्तिशाली हिन्दू संगठन की नींव रखने से पहले इसके संस्थापक डॉ. हेडगेवार ने भारत के प्राचीन गौरवशाली इतिहाससंस्कृतिमहान ग्रंथोंदेश के परमवैभव व पतन के कारणों और तत्कालीन दयनीय स्थिति का गहरा अध्ययन किया था. इसी अध्ययनमनन और अनुभव का संगम है राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ. संघ कार्य में व्यक्ति पूजा अथवा गुरुढमका कोई स्थान नहीं है. संघ ने भारत के सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के प्रतीक भगवा ध्वज को अपना गुरु और प्रेरणास्रोत स्वीकार किया है. समाज के जागरण के माध्यम से अपने राष्ट्र को परमवैभवशाली बनाना संघ का उद्देश्य है.

भारतीय पराक्रम ने ली अंगड़ाई

संघ की स्थापना से पहले भी राष्ट्र जागरण के अनेकों प्रयास हुए हैं. आचार्य चाणक्य के अथक प्रयासों के फलस्वरूप विदेशी एवं विधर्मी शक्तियां परास्त हुईं और सम्राट चन्द्रगुप्त के काल में अखण्ड भारत अपने वास्तविक स्वरूप में प्रकट हुआ. दक्षिण में स्वामी विद्यारण्य द्वारा किये गए राष्ट्र जागरण के महान कार्य के परिणाम स्वरुप विजयनगर का एक वैभवशाली हिन्दू साम्राज्य अस्तित्व में आया था. राजस्थान के महाराणा सांगा और महाराणा प्रताप ने मुगलों के नापाक इरादों को कभी पूरा नहीं होने दिया और राष्ट्रीय स्वाभिमान की लौ जलाए रखी.

इसी तरह समर्थ गुरु रामदास जैसे संतों के प्रयत्नों से छत्रपति शिवाजी का उदय हुआ और हिन्दवी स्वराज जैसे राष्ट्रीय जागरण के संघर्ष की शुरुआत हो सकी. श्री गुरु गोबिंद सिंह द्वारा खालसा पंथ की स्थापना और योद्धा सिक्खों द्वारा बलिदानों की अटूट श्रृंखला खड़ी कर विदेशी हमलावरों के हाथों हिन्दू धर्म और राष्ट्र की अस्मिता को बचाने के अनेक श्रेष्ठ कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न हुए. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने राष्ट्र जागरण के इसी संघर्ष और गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाया है.

उपरोक्त संदर्भ में एक अतिमहत्वपूर्ण बिंदु पर विचार करना चाहिए . पूर्व में राष्ट्र जागरण के सभी प्रयासों में एक सूत्रबद्धता का अभाव सदैव बना रहा. परतंत्रता के कारणों की गहराई में जाए बिना परतन्त्रता को मिटाने के प्रयास होते रहे. विदेशी आक्रांता क्यों सफल हुएराष्ट्र क्यों खंडित होता चला गयादेश क्यों बांटा गयाबुद्धिबलज्ञान-विज्ञान सब कुछ होते हुए भी जगतगुरु भारत परतंत्रता की जंजीरों में क्यों जकड़ा गयासंघ ने इन सभी प्रश्नों के उत्तर समस्त भारतीयों के समक्ष रखे हैं.

भारत की पहचान है हिंदुत्व

संघ ने ऐतिहासिक सच्चाई को संसार के सामने दृढ़तापूर्वक रखा है कि भारत सनातन काल से चला आ रहा विश्व का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र है. हिन्दुत्व भारत की राष्ट्रीयता है. भारत का वैभव और पतन हिन्दुओं के वैभव और पतन के साथ जुड़ा हुआ है.

जब हिन्दू समाज संगठित और शक्तिशाली था तो शक और हूण जैसे हमलावरों को भी परास्त करके उन्हें भारतीय जीवन प्रणाली में समरस कर लिया गया. परंतु जब हिन्दुओं में आपसी फूट घर कर गईसंगठन व प्रतिकार की भावना लुप्त हुई और संस्कृतिक राष्ट्रीयता की लौ क्षीण हुई तो भारत तुर्कोंअफगानोंपठानों और मुगलों जैसी बर्बर जातियों के हाथों पराजित होता चला गया.

इसी एकमेव कारण से अंग्रेज भी भारत को अपने ईसाई शिकंजे में जकड़ने में सफल हो गये. हालांकि परतंत्रता के इस लंबे कालखंड में हमारे हिन्दू समाज ने कभी भी परतंत्रता को स्वीकार नहीं किया. किसी ना किसी रूप में हिन्दू समाज संघर्षरत रहा. परंतु राष्ट्रीय स्तर पर संगठित प्रतिकार का अभाव बना रहा. अंग्रेजों के कालखंड में यद्यपि महात्मा गांधी जी के नेतृत्व में भारतीय समाज ने राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रयास किएपरंतु सांस्कृतिक राष्ट्रीयता के वास्तविक स्वरूप हिन्दुत्व का आधार ना होने से इस स्वतंत्रता संग्राम की परिणीति भारत के विभाजन के रूप में हुई.

अतः यह स्वीकार करने में कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने हिन्दुत्व को अपने राष्ट्र जागरण के कार्य का आधार बनाकर समस्त भारतीय समाज को राष्ट्रीय दिशा प्रदान की है. वर्तमान में नए भारतकी ओर बढ़ रहे कदमों का धरातल भी यही है.

राष्ट्र पहलेसंगठन बाद में

उल्लेखनीय है कि राष्ट्र के जागरण में वही संस्था अथवा नेतृत्व सफल हो सकता हैजिसके पास कार्यकर्ताओं के निर्माण की स्थाई व्यवस्था हो. संघ के पूर्व के काल में राष्ट्र जागरण के प्राय: सभी प्रयासों में निरंतर चलने वाली कार्यपद्धति का अभाव बना रहा. संघ की कार्यपद्धति (नित्य शाखा) में यह विशेषता है कि इसमें शिशुबालतरुण और वृद्ध स्वयंसेवक बनते रहते हैं. यही वजह है कि संघ के संस्थापक डॉ. हेडगेवार के देह छोड़ने के बाद भी संगठन निरंतर आगे बढ़ता चला गया. संघ की कार्यप्रणाली व्यक्तिपरिवारआश्रम एवं जाति केंद्रित ना होकर राष्ट्र केंद्रित है.

संघ का कार्य क्योंकि राष्ट्र जागरण से सीधा जुड़ा हुआ हैइसीलिए संघ ने स्वतंत्रता आंदोलन में बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपने व अपने संगठन के नाम को आगे ना रखते हुए स्वयंसेवकों ने प्रत्येक सत्याग्रह आंदोलन और संघर्ष में भाग लिया.

स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात भी संघ ने अपने विस्तृत एवं विशाल संगठन की आदर्श परंपराओं का पालन करते हुए गोवा स्वतंत्रता आंदोलनगौ रक्षा आंदोलन एवं श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को बल प्रदान किया. यह सभी कार्य राष्ट्र जागरण के कारण ही सफल हो सके. विदेशी आक्रमणों के समय समाज का मनोबल बनाए रखनेसैनिकों को प्रत्येक प्रकार की सहायता देने और सरकार की पीठ थपथपाने में भी स्वयंसेवकों ने अग्रणी भूमिका निभाई है.

संघ का चतुष्कोणीय स्वरूप

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा किए जा रहे राष्ट्र जागरण के राष्ट्रव्यापी स्वरूप को समझने के लिए इसके चतुष्कोणीय स्वरूप को गहराई से समझना भी आवश्यक है. संघ कार्य का प्रथम स्वरूप हैप्रत्यक्ष शाखा का कार्य. शाखा एक ऐसा शक्तिपुंज है, जहां से राष्ट्रप्रेम की विद्युत तरंगें उठकर समाज के प्रत्येक क्षेत्र को जगमगाती हैं. संघ शाखाओं व संघ के विभिन्न कार्यक्रमों में गाए जाने वाले एकात्मता स्त्रोतएकता मंत्र और गीतों में भारतीय संस्कृतिराष्ट्रीय एकतासामाजिक सौहार्द और राष्ट्र की आध्यात्मिक परंपराओं के दर्शन होते हैं. राष्ट्रीय महापुरुषों का स्मरण करते हुए संघ के स्वयंसेवक भारत माता की वंदना करते हैं.

शाखा में शारीरिक कार्यक्रमों की रचना इस तरह की जाती हैजिससे शारीरिक बल के साथ अपने समाज और देश के लिए जूझने की मानसिकता तैयार होती है. संघ द्वारा विकसित इस शाखा पद्धति ने राष्ट्र जागरण के कार्य के साथ न केवल विशाल हिन्दू समाज को संगठित किया हैअपितु अपने ऊपर होने वाले विधर्मी आघातों का सामना करने के लिए उसे शक्ति संपन्न भी बनाया है.

संघ कार्य का दूसरा स्वरूप हैसंघ द्वारा संचालित अथवा मार्गदर्शित क्षेत्र किसानमजदूर, वनवासी, गिरीवासी, विद्यार्थीशिक्षाचिकित्साकला इत्यादि क्षेत्रों में संघ के स्वयंसेवकों ने छोटे-बड़े अनेक संगठन तैयार किए हैं. यह सभी संगठन अपने अपने क्षेत्र की परिस्थितियों और आवश्यकताओं के अनुसार राष्ट्र जागरण का कार्य कर रहे हैं.

संघ कार्य का तीसरा स्वरूप हैस्वयंसेवकों द्वारा व्यक्तिगत स्तर पर किए जा रहे राष्ट्र जागरण के कार्यइस श्रेणी में विद्यालयसमाचार पत्रऔषधालयमंदिरों की व्यवस्था और विविध प्रकार के सांस्कृतिक व सेवा के प्रकल्प आते हैं. स्वयंसेवकों द्वारा किये जा रहे इन सभी कार्यों के पीछे राष्ट्रीय एकतासेवा एवं हिंन्दुत्व की प्रेरणा रहती है.

संघ कार्य अर्थात् राष्ट्र-जागरण का चौथा स्वरूप बहुत ही विशाल एवं महत्वपूर्ण है. इसमें वे सभी अभियानआंदोलनसम्मेलनआध्यात्मिक संस्थानधार्मिक संगठन आते हैं जो संघ के ही कार्य हिन्दू संगठन और संघ के ही उद्देश्य, ‘परम वैभवशाली- राष्ट्रके लिए सक्रिय हैं. संघ का इन सभी संगठनों को पूरा सहयोग रहता है. संघ के स्वयंसेवक अपने और संगठन के नाम से ऊपर उठकर एक देशभक्त नागरिक के नाते इन संगठनों में ना केवल सक्रिय भूमिका ही निभाते हैंअपितु संगठन तंत्र के सूत्रों को भी सम्मिलित और संचालित करते हैं.

तपस्या का परिणाम

संघ के स्वयंसेवकों ने अपनी 94 वर्षों की सतत तपस्या के बल पर भारत में सांस्कृतिक-राष्ट्रवाद अर्थात् हिन्दुत्व के जागरण का एक ऐसा सशक्त आधार तैयार कर दिया हैजिसमें से राष्ट्र-जागरण के अनेक अंकुर प्रस्फुटित होते जा रहे हैं. संघ ने सम्पूर्ण भारतीय समाज को एक नई दिशा प्रदान की हैजिसने राष्ट्र जीवन की उस दशा को बदल डाला है, जिसके कारण भारत निरंतर 1200 वर्षों तक विदेशियों के हाथों पराजित होता रहा. सर्वांग अजय शक्ति को प्राप्त कर रहा भारत वास्तव में अजय भारत बन रहा है. स्वदेश अब सुदेश बन रहा है.

संघ ने राष्ट्र-जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त दुविधा और हीन भावना की स्थिति को बदल कर एक शक्तिशाली समाज के गठन का मौन आंदोलन छेड़ा हुआ है. राष्ट्रीय शक्तियों को बल मिल रहा हैजबकि अराष्ट्रीय तत्व अलग-थलग पड़ते जा रहे हैं.

आज भारतवासियों का विश्वास बना है कि अपने राष्ट्र की सर्वांग स्वतंत्रतासर्वांग सुरक्षा और सर्वांग विकास के कार्य में जुटे हुए संघ के स्वयंसेवक बहुत शीघ्र अपने लक्ष्य को प्राप्त करेंगे और भारत माता फिर से विश्व गुरु के सिंहासन पर शोभायमान होगी.

(लेखक स्तंभकार एवं वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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