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राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कहा कि “दत्तोपंत ठेंगडी, अपनी
आखिरी सांस तक, असमानता को समाप्त करने के बारे में
सोचते थे. सद्भाव उनका विश्वास था. वे दृष्टा थे और उसी से, उन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में संगठन बनाए और उन्हें
देश-काल-स्थिति के अनुसार मार्गदर्शन किया. यह सब करते हुए, उन्होंने हिन्दू समाज के संगठन के सिद्धांत को बनाए रखा यानि
असमानता को समाप्त किया.
वे
श्रद्धेय दत्तोपंत ठेंगडी जन्म शताब्दी समारोह समिति द्वारा आयोजित ‘सामाजिक सद्भाव के परिप्रेक्ष्य में दत्तोपंत ठेंगड़ी’ विषय पर व्याख्यान में संबोधित कर रहे थे. तिलक रोड स्थित
गोलवलकर स्कूल के गणेश हॉल में वरिष्ठ प्रचारक, विचारक
और भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक दत्तोपंत ठेंगडी जी के जन्मशताब्दी वर्ष के
उपलक्ष्य में, व्याख्यान का आयोजन किया गया था.
समारोह की अध्यक्षता केंद्रीय समिति के सदस्य गोविंददेव गिरि महाराज ने की. समिति
के संयोजक रविंद्र देशपांडे व्यासपीठ पर मौजूद थे.
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सरसंघचालक ने कहा कि “दत्तोपंत ठेंगड़ी जी ने सद्भाव, समरसता के संदर्भ में उन सभी विचारों-आदर्शों को आत्मसात किया जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. हेडगेवार, गोलवलकर गुरुजी और बालासाहेब देवरस के विचारों में मिलते थे. इतना ही नहीं, डॉ. बाबासाहेब अम्बेडकर के साथ भी निकटता से जुड़े थे. इन महान हस्तियों के सहचर्य और समर्पण के माध्यम से दत्तोपंत ठेंगडी द्वारा बनाई गई व्यापक दृष्टि “हमारी प्राचीन परंपराओं“ के अनुरूप थी और वही दृष्टि संघ की है. उनका स्पष्ट मत था कि यदि समाज में असमानता है तो देश जीवित नहीं रह सकता. असमानता को समाप्त करने पर उनका आग्रह था. उनका दृष्टिकोण स्पष्ट था और इसके पीछे कोई राजनीतिक निहितार्थ नहीं था. समरसता के बिना समानता संभव नहीं है, इसके लिए भाईचारे की आवश्यकता है. समाज में सद्भाव तभी बनता है, जब हमें समाज में पीछे रह गए लोगों को उठाने के लिए थोड़ा झुकना पड़ता है. सद्भाव भाषण का विषय नहीं है, यह करने का विषय है.
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हमारी
प्राचीन विचार परंपरा में “एकरसता
का भाव“ निहित है. देश को उसके आधार पर विकसित करने के लिए सामाजिक
समरसता हासिल करनी है. इसे कभी भी हिंसा के जरिए हासिल नहीं किया जा सकता है.
क्रांति का रास्ता समानता पैदा नहीं करता है, यह एक
नया शोषणकारी वर्ग बनाता है, यह
सकारात्मक परिवर्तन नहीं लाता. भाईचारा, सकारात्मक
चर्चा और आत्मज्ञान असमानता को समाप्त करने के तरीके हैं. सद्भाव देश का राष्ट्रीय
लक्ष्य होना चाहिए, इसके लिए
धैर्य और संयम की आवश्यकता होती है. क्रांति से परिवर्तन नहीं आता, परिवर्तन लाने के लिए संक्रांति चाहिए.
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यह सब
करते हुए, एक व्यक्ति को लगातार सतर्क रहना चाहिए, क्योंकि जो लोग देश को विभाजित करने की कोशिश कर रहे हैं उनके
मन में एकता की भावना नहीं है. इसलिए हमारे देश में विविधता को “असमानता का आधार“ न बनने
दें. हमको अपने देश से विषमता को उखाड़ फेंकना है.
कार्यक्रम
की शुरुआत में, गोविंददेव गिरि महाराज ने कहा कि
दत्तोपंत ठेंगड़ी जी द्वारा प्रस्तुत सद्भाव का विचार हमारी संस्कृति का आविष्कार
है. उसके भीतर की एकरसता को पहचानना और उसका पालन करना आवश्यक है.
कोरोना महामारी के दौरान आवश्यक सभी प्रतिबंधों का अनुपालन करते हुए, इस कार्यक्रम में केवल पचास आमंत्रित लोगों ने भाग लिया. कार्यक्रम की शुरुआत और सूत्र संचालन रवींद्र देशपांडे ने किया.
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