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Tuesday, August 31, 2021

पाकिस्तान – जन्माष्टमी मना रहे हिन्दुओं पर कट्टरपंथियों ने किया हमला, भगवान की मूर्ति तोड़ी

 

इमरान खान के नया पाकिस्तान में हिन्दुओं के उत्पीड़न व अत्याचारों का क्रम निरंतर जारी है. नया मामला जबरन धर्म परिवर्तन के लिए कुख्यात सिंध प्रांत से सामने आया है. ताजा मामले में सिंध के खिप्रो में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मना रहे हिन्दुओं पर कट्टरपंथियों ने अचानक हमला कर दिया और मारपीट कर उन्हें वहां से भगा दिया. इतना ही नहीं, कट्टरपंथियों ने भगवान की मूर्तियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. घटना की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने के पश्चात मामला सामने आया है.

पाकिस्तानी एक्टिविस्ट और वकील राहत ऑस्टिन ने ट्वीट कर बताया कि सिंध के खिप्रो में एक हिन्दू मंदिर में तोड़फोड़ की गई है. हिन्दू भगवान का अपमान किया गया है, क्योंकि वे भगवान कृष्ण का जन्मदिन (जन्माष्टमी) मना रहे थे. पाकिस्तान में इस्लाम के खिलाफ ईशनिंदा के झूठे आरोप में भी मॉब लिंचिंग या मौत की सजा दी जाती है, लेकिन गैर-मुस्लिम देवताओं के खिलाफ अपराध में कोई सजा नहीं होती है.

जुलाई में गणेश मंदिर पर हुआ था हमला

एनजीओ न्यूज ऑर्गनाइजेशन द राइज न्यूज की एडिटर और पत्रकार वींगास ने ट्वीट कर लिखा कि खिप्रो में जन्माष्टमी पर कुछ लोगों ने तोड़-फोड़ की क्या दोषियों को सजा मिलेगी? पाकिस्तान में आए दिन हिन्दुओं के मंदिरों पर हमला होता रहता है. इससे पहले जुलाई के अंतिम हफ्ते में पंजाब सूबे के रहीमयार खान के पास स्थित भोंग में गणेशजी के मंदिर में धार्मिक अतिवादियों ने तोड़फोड़ की थी.

पाकिस्तान का सिंध सूबा मंदिरों पर हमले और जबरन धर्म परिवर्तन के लिए बदनाम है. राज्य में लगातार मंदिरों पर हमले होते रहे हैं, जबकि हिन्दू लड़कियों को अगवा कर उनका धर्म परिवर्तन भी करवाया जाता है. अक्तूबर 2020 में सिंध प्रांत के थारपारकर जिले में स्थित नागारपारकर में धार्मिक अतिवादियों ने दुर्गा माता की मूर्ति को खंडित कर दिया था. इसके अलावा सितंबर 2020 में सिंध प्रांत के बादिन जिले में एक मंदिर में तोड़फोड़ की गई थी.

स्रोत-विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Sunday, August 29, 2021

मोपला नरसंहार – 6 माह तक चलता रहा था नरसंहार, 10 हजार से अधिक हिन्दुओं की मौत हुई थी

नई दिल्ली. आईसीएचआर (ICHR) की तीन सदस्यों की समिति ने मालाबार में हुए मोपला के कथित विद्रोह में शामिल लोगों के नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानियों की सूची में से हटाने की सिफारिश की. डिक्शनरी ऑफ मार्टियर्स: इंडियाज़ फ्रीडम स्ट्रगल 1857-1947 पुस्तक वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जारी की थी.

समिति ने बताया कि यह पूरा विद्रोह एक “खिलाफत” स्थापित करने का प्रयास था और इसने दंगाइयों के रूप में हाजी की भूमिका को उजागर किया. जिसमें एक शरिया अदालत की स्थापना की थी और बड़ी संख्या में हिन्दुओं का सिर कलम किया था.

इस तथाकथित विद्रोह में लगभग 6 महीने तक हिन्दुओं का नरसंहार हुआ था, जिसमें 10,000 से भी अधिक लोगों की मौत हुई थी.

शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले आईसीएचआर ने पुस्तक के पांचवें हिस्से में प्रविष्टियों की समीक्षा की और यह निष्कर्ष निकाला कि मालाबार विद्रोह में शामिल 387 लोगों के नाम पुस्तक से हटाने चाहिएं क्योंकि इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह की आड़ में हिन्दुओं का नरसंहार किया था.

आईसीएचआर की समीक्षा रिपोर्ट में कहा गया कि “मोपला में लगभग सभी आक्रोश सांप्रदायिक थे और हिन्दू समाज के खिलाफ थे. यह सब कुछ असहिष्णुता के चलते किया गया था. इसीलिए जल्द ही निम्नलिखित नाम प्रकाशित होने वाले प्रोजेक्ट से हटाए जाने चाहिए.”

खिलाफत आंदोलन की आग में क्षेत्र के मुस्लिमों ने हिन्दुओं का बहिष्कार शुरू कर दिया और हिन्दुओं को निशाना बनाया गया. हिन्दुओं के घर, संपत्तियों और खेतों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया. जबरन धर्म परिवर्तन कराया गया, लेकिन हिन्दुओं को बचाने कोई नहीं आया.

सौम्येन्द्रनाथ जैसे कम्युनिस्ट नेताओं ने इसे “जमीदारों के खिलाफ विद्रोह” बताया. जबकि इतिहासकार स्टेफन फ्रेडरिक डेल ने स्पष्ट लिखा कि – यह जिहाद था.

वरियामकुननाथ कुंजाहमद हाजी के बारे में बताते हुए जे. नंदकुमार कहते रहैं कि हाजी एक ऐसे परिवार से आता था जो हिन्दू प्रतिमाएं ध्वस्त करने का आदि था. उसके अब्बा ने भी कई दंगे किए.

जिसके बाद उसे मक्का में प्रत्यर्पित कर दिया गया था. मोपला दंगे के दौरान कई हिन्दू महिलाओं के साथ दुष्कर्म भी किया गया और मंदिरों को ध्वस्त भी किया गया.

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने पाकिस्तान अथवा भारत का विभाजन पुस्तक में लिखा है कि मोपला दंगा दो मुस्लिम संगठनों ने किया था.

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने इसे हिन्दू मुस्लिम दंगा मानने से इनकार करते हुए कहा था कि हिन्दुओं की मौत का कोई आंकड़ा नहीं है, लेकिन यह संख्या बहुत बड़ी है.

यदि हम वामपंथी और कांग्रेसी विचारकों की बात देखें तो वह लगातार मोपला के इन हिन्दू विरोधी दंगों को स्वतंत्रता आंदोलन के नाम से परोसते आए हैं और हमें यह बताया जाता रहा कि यह सभी जिहादी स्वतंत्रता सेनानी थे. 

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

हिन्दी को तो हिन्दी ही रहने दीजिए…!!

 

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ में उर्दू शब्दों की अनावश्यक भरमार है. ऐसे में विचार करें कि बच्चे कैसे हिन्दी के शब्द सीखेंगे. और आने वाले कुछ दिनों में हम हिन्दी दिवस, हिन्दी पखवाड़ा, हिन्दी सप्ताह आदि मनाने वाले हैं.

परिषद की पुस्तकें लिखने वालों ने बहुत बारीकी से हिन्दी की ही पुस्तक में हिन्दी के स्थान पर उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को जिस प्रकार से ठूंसा है, उससे पता चलता है कि देश में विशेष प्रकार का नेरेटिव चलाने वाले कितनी दूर की सोचते हैं. पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ के किसी भी अध्याय को उठाकर देख लीजिए. हर पृष्ठ में पांच से दस लोक जीवन में प्रचलित शब्दों को उर्दू या फिर अंग्रेजी में ही लिखा गया है.

पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक रिमझिम के कुछ ही अध्यायों में उपयोग किए गए कुछ शब्द देखिए – सिलसिले, मुश्किलें, सिर्फ, रोजाना, जिंदगी, प्रमोशन, इम्तिहान, काफी, ज्यादा, ऑफिस, रिटायर, इस्तेमाल, फर्क, बेहद, सफर, दिलचस्प, आखिर, जरूरत, सवालों, जवाब, खासकर, कोशिश, ज़िद, दाखिला, मालूम, मजा, इत्मिनान, एहसास, अंदाज, फनकार, बेवकूफ, जुर्रत, बदहवासी, खयाल, इंतजार, बेशक, मुआयना, बाकी, इशारा, वक्त, बाकी, डिजाइन, शौक, स्कूल, तेज….. यह तो एक झलक मात्र है.

पूरी पुस्तक में ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जो दैनिक जीवन में काम आते हैं, जिन्हें उर्दू या अंग्रेजी में लिखा गया है. ऐसा भी नहीं है कि इनके स्थान पर हिन्दी में प्रचलित और लोकप्रिय शब्द नहीं हैं. इनके स्थान पर कठिनाई, अंत, आवश्यकता, प्रश्न, उत्तर, विशेष रूप से, प्रयास, प्रवेश, उत्तीर्ण, पता होना, परीक्षा, अनुभव, तरीका, कलाकार, मूर्ख, हिम्मत, प्रतीक्षा, परीक्षण, शेष, संकेत, समय, विद्यालय जैसे सामान्य प्रचलित शब्दों का उपयोग किया जा सकता था. लेकिन वामपंथी नेरेटिवकारों को तो हिन्दी पर उर्दू को थोपना था.

हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ को पढ़ते हुए लगता है, देवनागरी लिपि में उर्दू और अंग्रेजी को पढ़ रहे हैं.

प्रश्न यह कि यदि छात्र को हिन्दी की ही पुस्तक में हिन्दी के शब्द सीखने को नहीं मिलेंगे, तो वह हिन्दी को कहां और कैसे सीखेगा. फिर एक से पांचवी तक की पढ़ाई तो बच्चों की व्याकरण और भाषा की मूलभूत नींव तैयार करती है. ये वर्ष भाषा सीखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. यदि इन्हीं वर्षों में बच्चों के दिमाग में प्रचलित हिन्दी शब्दों के स्थान पर अन्य शब्द ठूंस दिए जाएंगे, तो वह अपनी मातृभाषा कैसे सीखेगा. उर्दू और अंग्रेजी को अलग से पढ़ाइये न, किसी को क्या आपत्ति होगी. लेकिन हिन्दी को तो हिन्दी ही रहने दीजिए.

Thursday, August 26, 2021

‘ऑपरेशन देवी शक्ति’ – अब तक 800 भारतीय नागरिकों व अफगान सहयोगियों की सुरक्षित वापसी

 

नई दिल्ली. अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद काबुल से भारतीय नागरिकों और अफगान सहयोगियों को ऑपरेशन देवी शक्तिके तहत सुरक्षित भारत लाया जा रहा है. काबुल से भारतीयों की सुरक्षित वापसी को लेकर चलाए जा रहे अभियान के नाम के बारे में विदेश मंत्री एस. जयशंकर के ट्वीट से जानकारी मिली. विदेश मंत्री ने मंगलवार को 78 और लोगों को अफगानिस्तान से लाए जाने के बारे में ट्वीट में ऑपरेशन के नाम का उल्लेख किया. उन्होंने लिखा, ‘ऑपरेशन देवी शक्ति जारी है. काबुल से 78 लोगों को दुशांबे के रास्ते लाया गया. आईएएफ-एमसीसी, एअर इंडिया और टीम एमईए को उनके अथक प्रयासों के लिए नमन.

भारत ने 16 अगस्त को काबुल से 40 भारतीयों को विमान से दिल्ली लाकर लोगों को सुरक्षित लाने के जटिल मिशन की शुरुआत की थी. इससे एक दिन पहले ही तालिबान ने अफगानिस्तान के दारुल हुकूमत पर कब्जा कर लिया था.

काबुल में बिगड़ते सुरक्षा हालातों और अपने नागरिकों की सुरक्षित वापसी के विभिन्न देशों के प्रयासों के बीच भारत अब तक 800 से ज्यादा लोगों को सुरक्षित ला चुका है.

प्रधानमंत्री ने 17 अगस्त को सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडल समिति की बैठक में अधिकारियों को अफगानिस्तान से सभी भारतीयों को सुरक्षित वापस लाने और भारत आने के इच्छुक अफगान हिन्दुओं और सिक्खों को शरण उपलब्ध कराने का निर्देश दिया था.

काबुल में मौजूद भारतीय दूतावास से 17 अगस्त को अपने सभी कर्मियों को वापस लाने के बाद जयशंकर ने मिशन को कठिन और जटिलकरार दिया था. मंगलवार को भारत अपने 25 नागरिकों और कई अफगान सिक्खों तथा हिन्दुओं सहित 78 लोगों को दुशांबे से लेकर आया, जिन्हें एक दिन पहले काबुल से तजाकिस्तान की राजधानी पहुंचाया गया था.

वहीं, हजारों अफगान नागरिक काबुल हवाई अड्डे के आस-पास एकत्र हैं जो तालिबान के कब्जे के बाद अपना देश छोड़ना चाहते हैं. उन्हें डर है कि तालिबान के साथ देश में बर्बरता का दौर फिर लौट आएगा.

स्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत

Tuesday, August 24, 2021

श्रीराम मंदिर के लिए सत्ता छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया

 - योगी आदित्यनाथ, मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश की राजनीति के पटल को दशकों तक अपनी आभा से आलोकित करने वाले श्रद्धेय कल्याण सिंह जी नहीं रहे. उनका देहावसान हो गया. अपार शोक की इस घड़ी में सोच रहा हूं कि अब जबकि वह हमारे बीच नहीं हैं, तो उन्हें किस तरह याद किया जाए. उन्हें एक राजनीतिक संत कहूं, जिसे पद-प्रतिष्ठा का मोह छू तक न पाया हो अथवा दृढ़ संकल्प की प्रतिमूर्ति मानूं, जो लक्ष्य का संधान होने तक अर्जुन की भांति एकनिष्ठ भाव के साथ सतत प्रयत्नशील रहे और अंततः सफलता ने उनका वरण किया.

वास्तव में, पांच दशक लंबा उनका सार्वजनिक जीवन इतना विविधतापूर्ण और संघर्षपूर्ण रहा है कि उसे कुछ एक विशेषणों के माध्यम से पूरा नहीं किया जा सकता. हां! इस विस्तृत समृद्ध राजनीतिक काल खंड में शुचिता, कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी, सख्त प्रशासक और कुशल नेतृत्व उनके व्यक्तित्व की पहचान जरूर बने रहे. भारतीय राजनीति के एक बड़े कालखण्ड में भारतरत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी, पूर्व उप प्रधानमंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी जी और कल्याण सिंह जी की तिकड़ी में भारतीय जनमानस की आकांक्षाओं की छवि स्पष्ट दृष्टिगोचर होती थी. मैं सौभाग्यशाली हूं कि इन तीनों महानुभावों का सहयोग और स्नेह पाने की योग्यता मुझमें बनी रही.

कल्याण सिंह जी, श्रीराम मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेतृत्वकर्ताओं में से एक थे. मंदिर के लिए सत्ता छोड़ने में उन्होंने एक क्षण भी नहीं लगाया. उनका यह कथन प्रभु श्रीराम के प्रति उनकी आस्था की झलक है. ‘‘…प्रभु श्रीराम में मुझे अगाध श्रद्धा है. अब मुझे जीवन में कुछ और नहीं चाहिए. राम जन्मभूमि पर मंदिर बनता हुआ देखने की इच्छा थी, जो अब पूरी हो गयी. सत्ता तो छोटी चीज है, आती-जाती रहती है. मुझे सरकार जाने का न तब दुख था, न अब है. मैंने सरकार की परवाह कभी नहीं की. मैंने पहले ही स्पष्ट कर दिया था कि कारसेवकों पर गोली नहीं चलाऊंगा. अन्य जो भी उपाय हों, उन उपायों से स्थिति को नियंत्रण में किया जाए….’’

सत्ता में ऐसे लोग विरले ही मिलेंगे. सच में उनके लिए भगवान श्रीराम पहले थे, सत्ता उसके बाद में. यही कारण है कि अयोध्या में 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद बतौर मुख्यमंत्री उन्होंने सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली. यह उनका त्याग और महानता थी. चूंकि मेरे दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ जी और पूज्य गुरुदेव ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी भी मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेतृत्वकर्ताओं से थे. इसीलिए जब भी उनसे कभी मुलाकात होती या उनका गोरखनाथ मंदिर आना होता तो मंदिर आंदोलन और अयोध्या में भव्य राम मंदिर के निर्माण को लेकर पूज्य गुरुदेव से उनकी लंबी चर्चा होती थी.

उनका अटूट विश्वास था कि प्रभु श्रीराम का भव्य और दिव्य मंदिर जन्मभूमि पर ही बनेगा. जब भी मंदिर आंदोलन पर चर्चा होती थी, तब वह कहते थे कि मंदिर निर्माण का काम मेरे जीवनकाल में ही शुरू होगा. प्रभु श्रीराम ने उनकी सुनी और देश के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भारतीय जनमानस की 500 वर्षों की प्रतीक्षा को पूर्णता प्रदान करते हुए मंदिर निर्माण का शुभारम्भ किया. आज कोटि-कोटि आस्था के प्रतीक मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के भव्य-दिव्य मंदिर का निर्माण अवधपुरी में सतत जारी है.

गोरक्षपीठ की तीन पीढ़ियां (ब्रह्मलीन महंत दिग्विजय नाथ जी, ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ जी और आज मैं, स्वयं) मंदिर आंदोलन से जुड़ी रहीं, इस नाते पीठ से उनका खास लगाव था. वह बड़े महाराज ब्रह्मलीन महंत अवैद्यनाथ का बहुत सम्मान करते थे. यही वजह है कि जब भी गोरखपुर जाते थे, वे हमारे पूज्य गुरु जी से मिलने जरूर जाते थे. दोनों का एक ही सपना था, उनके जीते जी अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण हो. ये मेरा सौभाग्य है कि जब जन्मभूमि का ताला खुला तब पूज्य दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत श्री दिग्विजयनाथ जी आंदोलन से जुड़े थे. जब ढांचा गिरा तब हमारे पूज्य गुरु ब्रह्मलीन श्री अवैद्यनाथ जी जी मंदिर आंदोलन के अग्रणी नेता थे और अब जब अयोध्या में प्रभु श्रीराम का भव्य और दिव्य मंदिर बन रहा है, तब मैं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का दायित्व निर्वहन कर रहा हूं.

समाज, कल्याण सिंह जी को उनके युगांतरकारी निर्णयों, कर्तव्यनिष्ठा व शुचितापूर्ण जीवन के लिए सदियों तक स्मरण करते हुए प्रेरित होता रहेगा. उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री, राजस्थान के पूर्व राज्यपाल, भारतीय जनता पार्टी परिवार के वरिष्ठ सदस्य व लोकप्रिय जननेता कल्याण सिंह जी का देहावसान संपूर्ण राष्ट्र के लिए अपूरणीय क्षति है. मैं उनके निधन पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं. प्रभु श्री राम से प्रार्थना है कि दिवंगत पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान दें और शोक-संतप्त परिजनों को दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें.

- साभार : पाञ्चजन्य

वैश्विक पटल पर वैचारिक विमर्श के लिये भारतीय चिंतन पर लेखन आवश्यक – दत्तात्रेय होसबाले

लखनऊ. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले जी ने शनिवार को लोकहित प्रकाशन द्वारा प्रकाशित प्रो. ओम प्रकाश सिंह, महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ की पुस्तक ‘‘वैदिक सनातन अर्थशास्त्र’’ का लोर्कापण किया. उन्होंने कहा कि वैश्विक पटल पर भारतीय चिंतन और मनीषा को वैचारिक विमर्श का विषय बनाने के लिये लेखन कार्य अनवरत बढ़ते रहना चाहिये.

सरकार्यवाह जी ने कहा कि वर्तमान कालखंड में सम्पूर्ण विश्व के अंदर विभिन्न विषयों पर आवश्यक वैचारिक विमर्श चल रहा है. यह अच्छी बात है, इसे चलते रहना भी चाहिये. ऐसे समय में भारत के आधारभूत चिंतन पर भी विविध विषयों में लेखन कार्य होते रहना चाहिये, ताकि भारतीय चिंतन भी दुनिया के विश्वविद्यालयों व थिंक टैंक के बीच चर्चा के विषय बन सकें.

उन्होंने कहा कि भारतीय चिंतन व मनीषा पर लिखते समय बदली वैश्विक परिस्थितियों के समन्वय पर भी ध्यान देना चाहिये. इसके लिये उन्होंने 12वीं से 14वीं शताब्दी के स्मृतिकारों की भी चर्चा की और कहा कि उस समय भारत की लगभग हर भाषा में भक्ति के नाम पर साहित्य की रचना हुई, जो स्मृति की तरह माने गए. उन्होंने कहा कि उक्त रचनाओं में भारत के प्राचीन चिंतन को तत्कालीन परिस्थितियों के साथ सरल भाषा में दर्शाया गया है.

उन्होंने चिंता व्यक्त की कि मुगल काल के बाद भारत में स्मृतियों के लिखने की व्यवस्था ध्वस्त सी हो गई. इस परंपरा को पुनः गतिशील करने पर उन्होंने बल दिया.

पुस्तक के लेखक और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी में पत्रकारिता संस्थान के निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह ने पुस्तक के बारे में विस्तार से चर्चा की. उन्होंने बताया कि ‘‘वैदिक सनातन अर्थशास्त्र’’ पुस्तक को पांच अध्यायों में लिखा गया है. इसमें वैदिक कालीन वित्तीय व्यवस्था, मूल्य नियंत्रण सिद्धान्त, विनिमय के सिद्धान्त और आजीविका के संदर्भ में ग्रामीण चिंतन आदि विषयों पर प्रकाश डाला गया है.

प्रो. एपी तिवारी ने ‘‘वैदिक सनातन अर्थशास्त्र’’ पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की और इसे देश के विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने की वकालत की. लोकहित प्रकाशन के निदेशक सर्वेश चंद्र द्विवेदी ने आभार व्यक्त किया. आभार प्रदर्शन संस्थान के निदेशक श्रीमान सर्वेश कुमार द्विवेदी जी ने किया.

Sunday, August 22, 2021

समाज के दोषों को समझते हुए उनका परिवर्तन सामाजिक विचारों को पुष्ट करता हैं - स्वांत रंजन

काशी में रक्षाबंधन उत्सव 

काशी| काशी में रक्षाबंधन उत्सव उत्साह और हर्षोल्लास के साथ मनाया गया| रक्षा का सन्देश देने वाले इस महापर्व पर महानगर के सभी नगरों में कार्यक्रम आयोजित किये गये| काशी दक्षिण भाग में माधव सेवा प्रकल्प, चांदपुर लोहता पर आयोजित कार्यक्रम में अखिल भारतीय बौद्धिक शिक्षण प्रमुख स्वांत रंजन जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत की गौरवशाली परम्परा में उत्सव का  योगदान रहा है| ध्वज को रक्षा बांधना समाज के विचारों की रक्षा करना है| 

भारतीय सामाजिक विचार सबको साथ लेकर चलने वाला है| उन्होंने कहा कि अलग अलग पूजा पद्धति के बावजूद सबका लक्ष्य परम पिता परमेश्वर की आराधना करना है, “केवल मेरी ही उपासना पद्धति ठीक है” यह संकुचित विचार है| यही relegion है, धर्म एक बड़ी संकल्पना है| उन्होंने आगे कहा कि भारत ने विश्व के सभी अच्छे विचारों को स्वीकार किया, भारत कभी गरीबी का पूजक नहीं रहाl ज्ञान, भौतिक समृद्धि, आध्यात्मिक समृद्धि इस राष्ट्र की पहचान रही है| भारत की प्राचीन परम्परा में छुआछूत नहीं रहा है आज की मेहतर जाति के पूर्वज  प्राचीन सैनिक रहे हैं| समाज के दोषों को समझते हुए उनका परिवर्तन करना सामाजिक विचारों को पुष्ट करता हैं| कार्यक्रम के प्रारम्भ में स्वांत रंजन जी, नगर सह संघचालक डॉ नागेंद्र जी एवं प्रतिष्ठित व्यवसायी जितेन्द्र जी ने भगवा ध्वज को रक्षासूत्र बांध समाज रक्षा का संकल्प लिया| इस अवसर पर कैलाश जी, विनोद जी, विपिन जी, उपेंद्र जी, मनीष जी सहित समाज के कई गणमान्य नागरिक और माताएँ उपस्थित रहीं|संचालन नगर कार्यवाह अरविन्द जी  ने किया|

काशी उत्तर भाग

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ काशी उत्तर भाग द्वारा रक्षाबंधन उत्सव पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया| सर्वप्रथम भारतीय संस्कृति के प्रतीक परम् पवित्र भगवा ध्वज को रक्षासूत्र बांध नगर संघचालक नन्दलाल, सुरेंद्र (काशी उत्तर भाग सेवा प्रमुख), एन.डी.आर.एफ. कमांडेंट मनोज कुमार शर्मा, सी.आर.पी.एफ. के नीतीन्द्रनाथ कमांडेंट (AOL), लक्ष्मी इन्क्लेव के अध्यक्ष डी सी राय ने राष्ट्र रक्षा का संकल्प लिया। 

इस दौरान गौतम नगर में सी.आर.पी.एफ.और एन.डी.आर.एफ. के जवानों को भी बहनों व भाइयो ने रक्षासूत्र बांधा| कार्यक्रम के मुख्य वक्ता सुरेंद्र जी ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूलभूत कार्यों जैसे व्यक्ति निर्माण, स्वत्व जागरण, समरस समाज निर्माण, समाज संगठन आदि रक्षाबंधन के आधारभूत मूल्यों के साथ मेल खाते हैं, इसलिये संघ की शाखाओं में मनाये जाने वाले राष्ट्रीय उत्सवों में रक्षाबंधन भी शामिल हो गया| इसके पश्चात उपस्थित सभी व्यक्तियों ने कार्यक्रम में आये एन डी आर एफ और सी आर पी एफ के जवानों को रक्षा सूत्र बान्धा व मिठाईया खिलाई|



स्वयंसेवकों ने रेलवे स्टेशन पर स्वच्छता कर्मियों, कुली एवं वेंडर को भी बंधा रक्षासूत्र

  
काशी उत्तर भाग के स्वयंसेवकों द्वारा वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन पर रक्षाबंधन उपस्थित यात्रियों, सुरक्षाकर्मीयो, स्वच्छताकर्मियों, कुली एवं वेंडर के बीच जाकर मनाया गया। स्वयंसेवकों ने सभी को रक्षासूत्र बांध मिठाई खिलाई साथ ही भारत माता की जय का घोष किया| इस दौरान उत्तर भाग सह कार्यवाह राजेश विश्वकर्मा, सेवा प्रमुख सुरेंद्र जी ,जितेंद्र जी,रामेश्वर जोगी,अजय बाबी,श्रावण कुमार उत्तर भाग प्रचारक रजत प्रताप जी प्रचार प्रमुख अमित गुप्ता के साथ दर्जन भर से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने लोगो को रक्षासूत्र बान्धा व मिठाई खिलाई व राष्ट्रीय पर्व रक्षाबंधन मनाया गया|