राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं
प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ में
उर्दू शब्दों की अनावश्यक भरमार है. ऐसे में विचार करें कि बच्चे कैसे हिन्दी के
शब्द सीखेंगे. और आने वाले कुछ दिनों में हम हिन्दी दिवस, हिन्दी
पखवाड़ा, हिन्दी सप्ताह आदि मनाने वाले हैं.
परिषद की पुस्तकें लिखने वालों ने बहुत बारीकी से हिन्दी की
ही पुस्तक में हिन्दी के स्थान पर उर्दू और अंग्रेजी के शब्दों को जिस प्रकार से
ठूंसा है, उससे पता चलता है कि देश में विशेष प्रकार का नेरेटिव चलाने
वाले कितनी दूर की सोचते हैं. पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ के किसी
भी अध्याय को उठाकर देख लीजिए. हर पृष्ठ में पांच से दस लोक जीवन में प्रचलित
शब्दों को उर्दू या फिर अंग्रेजी में ही लिखा गया है.
पांचवी कक्षा की हिन्दी की पुस्तक रिमझिम के कुछ ही अध्यायों
में उपयोग किए गए कुछ शब्द देखिए – सिलसिले, मुश्किलें, सिर्फ, रोजाना, जिंदगी, प्रमोशन, इम्तिहान, काफी, ज्यादा, ऑफिस, रिटायर, इस्तेमाल, फर्क, बेहद, सफर, दिलचस्प, आखिर, जरूरत, सवालों, जवाब, खासकर, कोशिश, ज़िद, दाखिला, मालूम, मजा, इत्मिनान, एहसास, अंदाज, फनकार, बेवकूफ, जुर्रत, बदहवासी, खयाल, इंतजार, बेशक, मुआयना, बाकी, इशारा, वक्त, बाकी, डिजाइन, शौक, स्कूल, तेज…..
यह तो एक झलक मात्र है.
पूरी पुस्तक में ऐसे सैकड़ों शब्द हैं जो दैनिक जीवन में काम
आते हैं, जिन्हें उर्दू या अंग्रेजी में लिखा गया है. ऐसा भी नहीं है
कि इनके स्थान पर हिन्दी में प्रचलित और लोकप्रिय शब्द नहीं हैं. इनके स्थान पर
कठिनाई, अंत, आवश्यकता, प्रश्न, उत्तर, विशेष
रूप से, प्रयास, प्रवेश, उत्तीर्ण, पता होना, परीक्षा, अनुभव, तरीका, कलाकार, मूर्ख, हिम्मत, प्रतीक्षा, परीक्षण, शेष, संकेत, समय, विद्यालय
जैसे सामान्य प्रचलित शब्दों का उपयोग किया जा सकता था. लेकिन वामपंथी
नेरेटिवकारों को तो हिन्दी पर उर्दू को थोपना था.
हिन्दी की पुस्तक ‘रिमझिम’ को पढ़ते हुए लगता है, देवनागरी
लिपि में उर्दू और अंग्रेजी को पढ़ रहे हैं.
प्रश्न यह कि यदि छात्र को हिन्दी की ही पुस्तक में हिन्दी के
शब्द सीखने को नहीं मिलेंगे, तो वह हिन्दी को कहां और कैसे
सीखेगा. फिर एक से पांचवी तक की पढ़ाई तो बच्चों की व्याकरण और भाषा की मूलभूत
नींव तैयार करती है. ये वर्ष भाषा सीखने के लिए सबसे महत्वपूर्ण होते हैं. यदि
इन्हीं वर्षों में बच्चों के दिमाग में प्रचलित हिन्दी शब्दों के स्थान पर अन्य
शब्द ठूंस दिए जाएंगे, तो वह अपनी मातृभाषा कैसे सीखेगा.
उर्दू और अंग्रेजी को अलग से पढ़ाइये न, किसी को
क्या आपत्ति होगी. लेकिन हिन्दी को तो हिन्दी ही रहने दीजिए.
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