05 अगस्त, 2019
के बाद
केंद्र सरकार पर आरोपों का दौर चलता रहा है कि अगस्त 2019 के बाद
जम्मू कश्मीर में कितना बदलाव हुआ, कितनी तरक्की हुई. जम्मू कश्मीर
में पिछले 24 महीनों में 360 डिग्री बदलाव देखने को मिला है. चाहे
वो विकास परियोजनाओं को लेकर हो, या प्रशासनिक स्तर पर या प्रदेश की
जनता के अधिकारों का मामला हो.
इनमें से कुछ मुख्य बदलाव…..
- अनुच्छेद 370 और 35A हटने के बाद जम्मू कश्मीर में भी भारतीय संविधान, अन्य राज्यों के समान पूर्णतया: लागू हुआ.
- विस्थापित कश्मीरी हिंदूओं के लिए 6 हजार सरकारी नौकरियों की व्यवस्था पिछले एक साल में की गयी.
- जम्मू कश्मीर में फिलहाल विधानसभा सीटों के डीलिमिटेशन का काम जारी है. डीलिमिटेशन कमीशन को मार्च 2022 तक रिपोर्ट देनी है. इस प्रक्रिया में राज्य की 90 सीटों का दोबारा परिसीमन किया जाना है. जिसमें पिछले परिसीमनों में की गयी त्रुटियों को सुधारा जाएगा. यानि जम्मू कश्मीर के हरेक क्षेत्र को तय नियमों के आधार पर बराबर सीटों का बंटवारा होगा. जिसके मुताबिक अनुमान है कि जम्मू संभाग में सीटें बढ़ सकती हैं. इससे पहले केंद्र सरकार ने प्रदेश के तमाम राजनीतिक प्रतिनिधियों से बातचीत की शुरुआत कर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में तेज़ी लाने और पार्टियों साथ लेकर चलने का प्रयास शुरु कर दिया है. ताकि डीलिमिटेशन की प्रक्रिया में तमाम पार्टियां हिस्सा ले सकें.
- जम्मू कश्मीर में आधी आबादी यानि महिलाओं, दलितों (विशेषकर वाल्मिकी समाज), पश्चिमी पाकिस्तानी शरणार्थी, गोरखा समाज, पीओजेके विस्थापितों के लाखों लोगों को समता, समानता और समान अवसर जैसे मूलभूत अधिकार के अलावा स्थायी निवासी होने का हक मिला. तमाम राजकीय भेदभाव खत्म हुआ.
- नई डोमिसाइल पॉलिसी लागू हुई. जिसके तहत देश के अन्य राज्यों के निवासियों को भी जम्मू कश्मीर में बसने, जमीन खरीदने और स्थायी निवासी बनने का अधिकार मिला. जम्मू कश्मीर और अन्य राज्यों के बीच की दीवार को हटा दिया गया.
- देश के अन्य हिस्सों में बसे 5300 पीओजेके विस्थापित परिवारों को भी राहत पैकेज दिया गया. साथ ही उनके जम्मू कश्मीर के स्थायी निवासी बनने का रास्ता भी प्रशस्त हुआ.
- 7वां वेतन आयोग 31 अक्टूबर, 2019 को जम्मू कश्मीर में तत्काल प्रभाव से लागू किया गया. साथ ही जम्मू कश्मीर सिविल सर्विस कैडर का अगमुट कैडर में विलय कर दिया गया.
- अनुच्छेद370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में पंचायती राज की स्थापना हुई. जिला पंचायत के चुनाव में 51.7% वोटिंग हुई. जिसमें पहली बार महिला आरक्षण लागू होने के बाद 100 महिलाएं चुनकर आई. साथ ही पहली बार 280 जिला पंचायत सदस्य चुने गए और 20 जिलों में पहली बार जिलाध्यक्ष चुने गए. जिन्हें डिप्टी कमिश्नर के समान प्रोटोकॉल दिया गया है.
- पहली बार प्रदेश में राजनीतिक आरक्षण लागू किया गया. जिसमें 20 जिलों में 6 महिला जिलाध्यक्ष, 2-2 एससी औऱ एसटी जिलाध्यक्ष चुने गए.
- पहली बार चुनाव के दौरान कहीं पर भी गोली नहीं चलानी पड़ी, चुनाव में घपला और अशांति नहीं हुई और भयरहित होकर लोगों ने मतदान किया. 280 सीटों पर कुल 2178 उम्मीदवारों ने चुनाव लड़ा, जिसमें 450 महिलाएं थीं. जिला पंचायत चुनाव में एसटी कैटेगरी में शामिल 38 गुज्जर बक्करवाल जिला पंचायत सदस्य चुनकर आए, जिनमें 15 महिला हैं. अब तक इस जनजाति का राजनीति में प्रतिनिधित्व बेहद कम रहता था.
- कुल 4483 सरपंच निर्वाचन क्षेत्रों में से, 3650 सरपंच निर्वाचित हुए और 35029 पंच निर्वाचन क्षेत्रों में से, 23660 पंच निर्वाचित हुए. 3395 पंचायतों का विधिवत गठन हुआ और 1088 प्रशासक नियुक्त किए गए. विगत महीनों में पंचायतों को सुदृढ़ किया गया है और 21 विषय पंचायतों को सौंपे गए हैं. साथ ही पंद्रह सौ करोड़ रुपये उनके खाते में डाल कर उन्हें मजबूत किया गया, जिनमें आईसीडीएस, आंगनवाड़ी, मनरेगा की मॉनिटरिंग और खनन का अधिकार संबंधी विषय शामिल हैं. इससे वह आत्मनिर्भर होंगे, अपने गांव का विकास करेंगे और यह सब धारा 370 हटने के कारण संभव हो सका है.
- 01 जून 2020-21 से, सरपंचों ने मनरेगा योजना के लिए भुगतान शुरू कर दिया है. जिसके परिणामस्वरूप उन्हें इस वर्ष लगभग 1000 करोड़ रुपये सौंपे जाएंगे. एक अन्य निर्णय में जम्मू-कश्मीर सरकार ने खनन अधिकार भी पंचायती राज संस्थानों को सौंप दिए हैं. निर्वाचित प्रतिनिधियों को मानदेय और अग्रता सूची में औपचारिक स्थान प्रदान किया गया – बीडीसी अध्यक्ष को डीएम के समान स्थान दिया गया. क्षमता संवर्धन के लिए प्रशिक्षण की भी व्यवस्था की गई है. सभी राज्य पदाधिकारियों को आवंटित पंचायतों के अंदर दो दिन-एक रात का प्रवास करना सुनिश्चित करने के लिए कहा गया है.
- 17 महीनों में पंचायतों को सुदृढ़ किया गया और 21 विषयों को पंचायतों के हवाले किया गया और 1500 करोड़ रुपये उनके खाते में डाल कर उन्हें मजबूत किया गया.
- 2019-20 में छह लाख लोगों ने विभिन्न खेल गतिविधियों में भाग लिया. ऐसा मुमकिन है, क्योंकि कानून व्यवस्था सामान्य स्थिति में है.
- जम्मू कश्मीर प्रशासन ने 3.50 लाख फाइलों के 2 करोड़ से अधिक पन्नों को ऊ ऑफिस – प्रोजेक्ट के तहत सफलतापूर्वक डिजिटलाइज़ किया है. इससे करोड़ों रुपये की बचत होगी, और फाइलों को दरबार मूव के दौरान जम्मू से श्रीनगर और श्रीनगर से जम्मू ले जाने की जरूरत भी नहीं होगी. डिजिटलाइजेशन से वर्ष में 50 करोड़ रुपये का व्यय कम होगा.
- जम्मू कश्मीर सरकार ने मौजूदा वित्त वर्ष में गांव की ओर (बैक टू विलेज) कार्यक्रम के तहत 50 हजार युवाओं को स्वरोजगार के लिए वित्तीय मदद देने की योजना लागू की है. इसके अलावा विभिन्न सरकारी विभागों में 18 हजार पद भी चिह्नित कर आवेदन मांगे जा चुके हैं. इस वर्ष में कुल 25 हजार सरकारी नौकरी प्रदान करने का लक्ष्य रखा गया है.
- जम्मू-कश्मीर में कुल 23,111 सरकारी स्कूलों के साइन बोर्ड का बैकग्राउंड तिरंगा बनाया गया और उसके ऊपर स्कूल के बारे में सारी जानकारी लिखी गयी. स्कूलों बच्चों में देश के राष्ट्रध्वज के प्रति सम्मान बढ़ाने की दृष्टि से ये फैसला किया गया.
स्रोत-विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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