कला क्षेत्र में कार्यरत संस्था संस्कार भारती ने सरकार से
मांग की कि स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति के नाम पर समाज और राष्ट्र को आघात पहुंचाने
वाली कृतियों पर अंकुश लगाने हेतु अविलंब कठोर कानून बनाए. संस्कार भारती ने
प्रबंध कारिणी की बैठक में प्रस्ताव पारित कर यह मांग की. साथ ही वेब सीरीज में
सेना, भारतीयता व
हिन्दुत्व पर चोट पहुंचाने वाली कृतियों की निंदा की.
संस्कार भारती – अखिल भारतीय प्रबंध कारिणी बैठक, 07 जून 2020 (प्रस्ताव)
पिछले कुछ वर्षों से टीवी सीरियल व फिल्मों के बाद अब
इंटरनेट के माध्यम से वेब सीरीज मनोरंजन का एक प्रमुख लोकप्रिय साधन बनकर उभरा है.
कोविड 19 के
संकटकाल में सिनेमा हॉल आदि बंद होने के बाद तो इन वेब सीरीजों की मांग और भी
ज्यादा बढ़ गई है. अधिकतर आपराधिक विषयों पर आधारित ये वेब सीरीज विशेष रूप से
युवाओं और महिलाओं में लोकप्रिय हो रही हैं. इनके बढ़ते व्यापार को ध्यान में रखते
हुए और यथार्थवादी कलात्मकता के नाम पर इन वेब सीरीजों में खुलेआम घृणित हिंसा, लैंगिकता और
नग्नता के दृश्य दिखाए जाते हैं और संवादों में गालियों की भरमार होती है. और इन
सब की अपरिहार्यता साबित करने के लिए कई प्रकार के थोथे तर्क भी दिए जाते हैं. इसी
के साथ इन वेब सीरीजों में सनातन हिन्दू धर्म को बदनाम और कलंकित करने वाले एवं
हिन्दू मान बिन्दुओं को अपराधी दिखाने वाले दृश्य भरपूर मात्रा में दिखाए जाते
हैं. भारतीय जन मानस में आदर का स्थान प्राप्त हमारी सेना व उनके परिवारों को भी
अपमानजनक रूप से चित्रित किया जाता है.
अखिल भारतीय प्रबंध कारिणी का स्पष्ट मानना है कि यह
सामाजिक मान्यताओं को आहत करने का एक सुनियोजित षड्यंत्र है. कलात्मक अभिव्यक्ति
के नाम पर और इन माध्यमों पर अभी नियमन की कोई समुचित व्यवस्था न होने के कारण इन
माध्यमों को अराजकता की हद तक ले जाने वाली स्वच्छंदता को मानो खुली छूट मिल गई
है. हम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के वहीं तक पक्षधर हैं, जहां तक
मानवीय संवेदना, पारंपरिक मूल्यों तथा राष्ट्र की अस्मिता पर आघात न पहुंचे.
कला के क्षेत्र में दुनिया के सबसे
प्राचीनतम ग्रंथ, जिसे पंचम वेद की संज्ञा प्राप्त है, भरतमुनि के
नाट्यशास्त्र के प्रथम अध्याय के 114वें श्लोक में कहा गया है कि नाटक
गीत, दृश्य-श्रव्य
रूप में, सभी रसों, सभी भावों, सभी कर्म एवं
क्रियाओं द्वारा शिक्षा प्रदान करने वाला होगा. नाटक दुःख से, थकान से, शोक से पीड़ित
दीन दुखियों को विश्रांति देने वाला होगा. नाट्यशास्त्र के ही 22वें अध्याय
में 299वें
श्लोक में कहा गया है कि पिता, पुत्र, सास, बहू सभी एक साथ बैठकर नाटक देखते हैं, इसलिए किसी भी
प्रकार का लज्जाजनक अभिनय प्रदर्शित नहीं करना चाहिए.
अखिल भारतीय प्रबंध कारिणी साफ-सुथरा मनोरंजन प्रस्तुत करने
वाली वेब सीरीज की प्रशंसा करती है और ऐसे निर्माता-निर्देशकों से निवेदन करती है
कि भारतीय समाज की विशिष्टता का दर्शन कराने वाली सीरीजों का निर्माण करें तथा कला
साहित्य, संस्कृति तथा
भारत और भारतीयता के अनुरागियों से यह अपेक्षा करती है कि वे ऐसी स्वच्छंद, अश्लील
कृतियों व कृत्यों का बहिष्कार करें. अखिल भारतीय प्रबंध कारिणी सरकार से भी मांग
करती है कि समाज और राष्ट्र को आघात पहुंचाने वाली इस प्रकार की कृतियों पर अंकुश
लगाने हेतु कठोर कानून बनाने की अविलंब व्यवस्था करे.
श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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