श्रीराम
जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन को खड़ा करने, से लेकर श्रीराम मंदिर निर्माण तक की
पूरी प्रक्रिया में विहिप का बड़ा योगदान रहा है. वर्तमान में श्रीराम मंदिर
निर्माण हेतु पूरे देश में निधि समर्पण अभियान चलाया जा रहा है. श्रीराम मंदिर
निर्माण तथा निधि समर्पण अभियान से जुड़े विभिन्न विषयों पर विहिप के कार्याध्यक्ष
आलोक कुमार जी की ‘हिंदी
विवेक’ से
बातचीत के कुछ प्रमुख सम्पादित अंश –
अयोध्या
में राम मंदिर निर्माण के लिए विश्व का सबसे बड़ा निधि समर्पण अभियान चलाया जा रहा
है, इसकी कुछ
प्रमुख बातें क्या हैं?
भारत के राष्ट्रपति जी से लेकर उन लोगों तक जो
झुग्गी-झोपड़ियों में रहते हैं या फुटपाथ पर भी रहते हैं. शुरू में हमने अपनी शक्ति
का अंदाजा लगा कर यह घोषणा की थी कि हम देश भर के कुल ४ लाख गांवों में जाएंगे, ११ करोड़ परिवारों तक जाएंगे. जब हमने पूरे देश में प्रांत–प्रांत की बैठक कर ली तब हमें यह बात ध्यान में आई कि देश तो
इस अभियान में आगे बढ़ कर तैयार है. अब हमारा अंदाजा है कि हम साढ़े ५ लाख गांवों
में जाएंगे, १३ करोड़ परिवारों में जाएंगे. १३ करोड़
परिवार का मतलब है कि लगभग ६५ करोड़ लोग इस अभियान में प्रत्यक्ष रूप से समर्पण
करेंगे. ५-५ लोगों की टोली बनाकर जाएंगे, जो
समर्पण निधि लेंगे उसकी रसीद और कूपन देंगे. वह निधि प्रत्येक ४८ घंटे में बैंक
खाते में जमा की जाएगी. और पूरी तरह पारदर्शी तरीके से हम १५ जनवरी से इस अभियान
का शुभारंभ करके २७ फरवरी तक संपन्न करेंगे.
इस महाभियान
का उद्देश्य क्या है और इसमें विश्व हिन्दू परिषद् की भूमिका क्या होगी ?
विश्व हिन्दू परिषद ने श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र से
प्रार्थना की थी कि उनके धन संग्रह के काम में हम भी देशभर में लगना चाहते हैं.
उन्होंने इस पर विचार किया और यह कार्य करने के लिए उन्होंने हमें नियुक्त किया
है. श्रीराम मंदिर से राष्ट्रनिर्माण करने के उद्देश्य से जन-जन तक और घर-घर तक
जाने हेतु विश्व हिन्दू परिषद ने इस अभियान में हिस्सा लिया है और यही हमारी
भूमिका है.
समाज के
विभिन्न घटकों खासकर वनवासी बंधू और समाज के निचले वर्ग को इस अभियान के अंतर्गत
जोड़ने के लिए क्या कुछ विशेष प्रयास किये जाएंगे ?
हम लोग पूरे समाज के पास जा रहे हैं और जैसे इन सब भेदों को
अस्वीकार करके समरस हिन्दू समाज का निर्माण करने हेतु हम सभी के पास जाएंगे. रामजी
नंगे पैर गए थे, तापस वेश में गए थे. उस प्रक्रिया में
उन्होंने सारे समाज को जोड़ दिया था. अनुसूचित जाति-जनजाति, वनवासी आदि निचले वर्ग को भी उन्होंने अपने आत्मीय
स्नेह-प्रेम से मित्र और भाई बना लिया था. इसलिए यह अभियान और मंदिर का निर्माण इस
तरह के भेदों को नष्ट कर देगा और समाज को संगठित एवं समरसता से भर देगा.
राम
मंदिर भूमिपूजन के अलौकिक और ऐतिहासिक प्रसंग के समय विहिप अध्यक्ष के रूप में तब
आपकी क्या मनोभावना थी ?
उसको शब्दों में व्यक्त नहीं कर सकते. प्रधानमंत्री जी जब
रामलला के चरणों में साष्टांग समर्पित हुए तब वह भारत की राज सत्ता अनन्त कोटि
ब्रह्माण्ड नायक के समक्ष अवनत हो रही थी और देश की राजनीति में मानव शास्त्र का
जो धर्म शास्त्र है, उसकी
सत्ता को स्वीकार कर रही थी. कुल १३६ लोग ही भूमिपूजन कार्यक्रम में आमंत्रित किये
गए थे, वह सब तो ऐसे लोग थे जो १९८४ से श्रीराम जन्मभूमि आन्दोलन का
नेतृत्व कर रहे थे. उसमें से एक-एक व्यक्ति ऐसे सेना के नायक थे, जिन्हें पूरा देश जानता था. एक बार तो मेरा ऐसा मन हुआ कि मैं
कहीं रास्ते में लेट जाऊं. यह सब मेरे शरीर से होकर के गुजरें, इन सभी के चरणों की रज मुझे प्राप्त हो. बस मेरे मन में यही
भावना थी और दूसरी बात यह है कि जब मैं पहले आंखे बंद करके सोता था तो सपने में
मुझे मीरबांकी की सेना मंदिर को ध्वस्त करती हुई दिखाई देती थी. हमारे भगवान की
मूर्तियों को तोड़ती हुई दिखाई देती थी. लेकिन ५ अगस्त भूमिपूजन के बाद से जब मैं
सोता हूं तो मैं आकाश को छूता हुआ भव्य दिव्य मंदिर देखता हूं. अपने कलंक को धो कर
स्वाभिमान पूर्वक गर्व से विश्व में यह घोषणा करता हूं कि हां यह शताब्दी हिन्दू
शताब्दी है और इसका प्रतीक होगा राम मंदिर.
रामजन्मभूमि
पर राम मंदिर का निर्माण भारत के स्वर्णयुग की दिशा में बढ़ने का प्रवास है.
राममंदिर से राष्ट्रमंदिर कैसे बनेगा ? इस पर आपका क्या मानना है ?
राम कथा का प्रचार ही राम मंदिर से राष्ट्रमंदिर का निर्माण
करेगा. जब रामजी केवट के पास गए और उसको राम जी ने अपने पास बुलाया, इस सन्दर्भ में तुलसी रामायण में लिखा है कि केवट ने संकोच से
कहा कि मैं तो छोटी जाति का हूं, तब राम
ने उत्तर दिया मैं छोटे-बड़े में विश्वास ही कहां करता हूं. मेरे लिए तो केवल भक्ति
का मोल है. जब सबरी ने रामजी से अपनी जाति के बारे में जिक्र किया, लेकिन राम मगन रहे उसके बेर खाने में. राम मंदिर की प्रेरणा
और आदर्श से ऐसा ही हमारा समरस समाज बनेगा. राम वनवासियों के अर्थात् अनुसूचित
जनजातियों की बस्तियों में पैदल नंगे पैर गए थे. उनको अपना परम मित्र बनया था.
मैंने वह गुफा देखी है. थोड़ा जंगल का रास्ता है, कुछ समय
नदी से होकर गुजरना पड़ता है. थोड़ा ऊपर चढ़ना पड़ता है. वह किष्किन्धा की सुग्रीव
गुफा है. वहां पर थोड़ी अग्नि जल रही थी. जिसमें राम ने सुग्रीव से मित्रता के लिए
अग्नि की प्रदक्षिणा कर वचन लिया था. तो यह अनुसूचित जाति-जनजातियों को मुख्यधारा
में लाना और उनकी आर्थिक, शैक्षणिक
उन्नति कर के उनको सभी प्रकार से समर्थ बनाना, यही राम
का सामाजिक उद्देश्य था. राम अहिल्या के आश्रम में गए तो उन्होंने समाज से पूछा कि
अहिल्या जड़ क्यों हो गई ? दोष तो
इंद्र का था, धोखा उसने किया था, इंद्र को दण्डित नहीं किया ? सारा
अपमान अहिल्या को सहना पड़ा. राम ने उसकी गरिमा उसे वापस कर दी तो इस तरह महिलाओं
की गरिमा और सहभागिता रामजी ने सुनिश्चित की. इसके अलावा राम ने धनुष उठा कर यह
प्रतिज्ञा की थी कि इस धरती को मैं निशिचर विहीन कर दूंगा और उन्होंने किया भी, आतंकवाद का नाश करना ही रामराज्य की ओर प्रयाण है. यह भारत के
जगतगुरु होने का प्रयाण है और यह वह यशोभूमि है, जिसने
पुस्तक से नहीं अपितु अपने चरित्र से लोगों को शिक्षा दी है. दुनिया के लोगों को
सुख और शांति का मार्ग भारत अपनी प्रतिमा से बता सके, ऐसे स्वर्णयुग की ओर हम प्रस्थान कर रहे है.
लगभग ५००
वर्षों के लम्बे संघर्ष के बाद रामजन्मभूमि पर राममंदिर बनने का सुअवसर आया है, इसे आप
राष्ट्र के लिए कितनी बड़ी उपलब्धि मानते हैं और क्या इससे भारतीय संस्कृति का
पुनरोत्थान होगा ?
अवश्य होगा, मंदिर का
जो निर्माण होगा वह ऐसा नहीं है कि लोग सुबह के समय हवाई जहाज से आएंगे और रात को
चले जाएंगे. वहां एक सुंदर म्यूजियम होगा, जिसमें
राम कथा होगी, राममंदिर के संघर्ष का इतिहास होगा, दुनियाभर की विविध राम कथाओं का प्रक्षेपण होगा, लोग यह अनुभव करेंगे कि हम रामजी के राजतिलक के समारोह में
साक्षात भाग ले रहे है. एक बड़े सत्संग मंडप में भारत के बड़े-बड़े साधू-संतों द्वारा
रामकथा अनवरत होती रहेगी. एक बड़े एमपी थियेटर में प्रतिदिन रामलीला और
नृत्य-नाटिकाएं होंगी. सीता रसोई में भक्तों के लिए प्रसाद की व्यवस्था होगी. पूरे
विश्व से रामभक्त अयोध्या जाएंगे और सरयू में स्नान कर के रामजी के दर्शन करेंगे.
एक दिन म्यूजियम में बिताएंगे और २ दिन कथा सुनेंगे, एक दिन
राम लीला देखेंगे और अपने ह्रदय में विराजित राम को विकसित करेंगे. राम के सबसे
नजदीक होंगे, मर्यादाओं का वर्धन करेंगे और फिर
सोचेंगे कि यहां पर हर वर्ष आना है. यह वह आदर्श भूमि बनेगी जो अखिल भारत में
शुचिता, पवित्रता, आध्यात्मिकता
और सामर्थ्यशाली जीवन का संदेश देगी.
भगवान
रामजी को आदर्श राष्ट्र पुरुष माना जाता है. राममंदिर देश की एकता, सामाजिक
समरसता के लिए किस तरह से विद्यमान हो सकता है ?
‘आसेतु हिमाचल सारा देश’. रामजी के बारे में कहा गया है कि वह हिमायल से अधिक धैर्यवान
थे, सागर से गंभीर थे. ‘रामो
विग्रहवान धर्म’ अर्थात धर्म का साक्षात रूप थे और
सांस्कृतिक अखंड भारत के वह रूप थे. इसलिए साढ़े ६ लाख गांवों में से साढ़े ५ लाख
गांव इस अभियान में शामिल हो रहे हैं. जन-जन में राम और घर-घर में राम व्याप्त
करने के लिए जन अभियान चलाया जा रहा है. जिसमें देश की ६५ करोड़ जनता भाग ले रही
है. राम सबको सांस्कृतिक एकता के सूत्र में बांध रहे है, मर्यादाओं के रूप में, राष्ट्र
जीवन के लिए अभूतपूर्व कार्य हो रहा है. मुझे पूर्ण विश्वास है कि राममंदिर का
निर्माण राष्ट्र के निर्माण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा और देश की एकता, अखंडता, सामाजिक
समरसता के आदर्श स्तंभ के रूप में स्थापित होगा.
देश की
विविधता और सांस्कृतिक विरासतों को दर्शाने के लिए क्या राम मंदिर परिसर में सभी
राज्यों एवं प्रान्तों की प्रदर्शनियां लगाई जाएगी ?
मुझे मुश्किल लगता है ऐसा होना क्योंकि हमारे पास स्थान सीमित
है. पर, इस विविधता को स्वीकार करना और इस विविधता में एकत्व के
सूत्रों को ढूंढना यह हमारी भारतीय संस्कृति का भाग है. राम ने लंका पर प्रयाण
करने से पहले रामेश्वर में भगवान शिव के शिवलिंग की स्थापना करके और उस क्षेत्र के
सभी पुण्यवान लोगों को बुलाकर के उनकी उपस्थिति में भोलेशंकर की पूजा की थी और कहा
था कि यदि कोई मेरी भक्ति करता है और शिव से द्रोह करता है तो उसको मोक्ष नहीं मिल
सकता. मुझसे कोई द्रोह करे और शिव की भक्ति करे तो मोक्ष जरुर मिल सकता है, ऐसे रामेश्वर हैं राम. शिव से पूछो तो वह कहते हैं कि राम
जिसके ईश्वर हैं, वह रामेश्वर
और राम से पूछो तो वह कहते हैं शिव जिसके ईश्वर है, वह
रामेश्वर. यह विविधताओं को और एकता के सूत्रों को दोनों को समन्वित रूप से स्वीकार
करना आवश्यक है और हम करते भी हैं.
निधि
समर्पण अभियान को जनता का कितना प्रतिसाद मिल रहा है ?
मैं यह अवश्य यह देख रहा हूं कि मैं और मेरे साथी इस अभियान
के बारे में जो भी कल्पनाएं करते हैं वह कल्पना छोटी हो जाती है. हम किसी से १
करोड़ मांगने जाते हैं और वह ११ करोड़ रुपये देने की तैयारी में बैठा होता है. ऐसा
ही मेरे साथ बैठकों में हुआ. शुरू में किसी ने कहा कि हम २१ हजार रू. देंगे, लेकिन बैठक समाप्त होने के बाद ४-५ लोगों ने खड़े होकर कहा कि
हम ५१ हजार रू. देंगे.
राममंदिर
के निर्माण से क्या हिन्दुओं का स्वाभिमान जागृत हुआ है ?
अकुला रहा था मन और अपने डीएनए में हम अवसाद में पैदा होते
थे. हिन्दू , २५ पीढ़ियों से इस तकलीफ में पैदा होते थे
कि देखो हमारा मंदिर टूटा पड़ा है. हमारे राम जी और सीता माता की मूर्तियों का चूरा
उस जमीन पर पड़ा हुआ है. जिस पर से हम चल कर जाते हैं. हम उस अपमान को धो रहे हैं, उस कलंक को धो रहे हैं. हम अपने स्वाभिमान की पताका को एक
हजार वर्ष तक रहने वाले भवन से बना रहे हैं. यह भवन इस बात की दुनिया में घोषणा
करता है कि अब हिन्दू कमजोर नहीं है. अब हिन्दू असंगठित नहीं है. अब हिन्दू दुनिया
में अपना दायित्व निभाने के लिए संगठित सामर्थ्यवान होकर खड़ा होगा और विश्व को
बताएगा कि शक्ति जो होती है, वह केवल
साम्राज्यवादी विस्तार के लिए नहीं होती, विश्व
शांति और सुख के लिए भी होती है. ऐसा हमारे पीढ़ी के समय में हो रहा है, यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है. हम अपनी आंखों के सामने
राममंदिर बनता हुआ देख रहे हैं, यह हमारा
सौभाग्य है और हनुमान जी की वानर सेना में उन्होंने हमको भी शामिल किया हुआ है और
हम सब भी इसके पुरुषार्थ का हिस्सा बनाए गए हैं, इस
सौभाग्य से मैं स्वयं से ही इर्ष्या करता हूं.
श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत
No comments:
Post a Comment