अनूपगढ़ के 17 स्वावलंबन केंद्रों में महिलाओं ने सिलाई सीख कर निरंतर बंडिया, थैले, ओम की पताका, लंगोट वर्ष भर सिलाई कर, अपने परिवार में आर्थिक योगदान कर रही हैं। |
- रश्मि दाधीच
मांग में सिंदूर, हाथों में मेहंदी और सुर्ख लाल जोड़े में सजी राखी,उषा व सीमा की
खुशियां आज नए जीवन की अंगड़ाइयां ले रही थी। सेवा भारती अनूपगढ़ द्वारा आयोजित
सामूहिक विवाह कार्यक्रम में दुल्हन बनी ये युवतियां कभी जिन गलियों में भीख
मांगती,आज जब उन गलियों
से उनकी डोली उठी तो इनके माता-पिता ही नहीं मोहल्ले वालों ने भी सेवाभारती के
कार्यकर्ताओं को आशीर्वाद की झड़ियों में भिगो दिया। भीख मांगने वाले परिवारों की
इन बालिकाओं को सिलाई, मेंहदी, पार्लर व अन्य
रोजगारपरक ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भरता की राह दिखाई अनूपगढ सेवाभारती
स्वावलंबन केंद्र ने । खाने के लिए हाथ पसारती सीमा जिन घरों से झिड़क और अपमान
सहती,आज उन्हीं घरों
में दुल्हन के अरमानों की मेहंदी सजाने के लिए जानी जाती है। सालों से घर-घर में
दाल मांगने जाती पूनम का तो नाम ही दाल पड गया था। आज वही पूनम, स्वावलंबन केंद्र में सिलाई सीखने के बाद "पूनम बुटीक" खोलने की तैयारी कर रही
है।
सेवा भारती के द्वारा सामूहिक विवाह कार्यक्रम में बस्ती की
चार बेटियों का विवाह धूमधाम से संपन्न किया गया। |
अनूपगढ़ में सांसी, बिहारी, ढोली, बाजीगर बस्ती के करीब 110 परिवार हैं । जो कभी गलियों में आटा, दाल, चावल मांगते कचरे
में हाथ और आंखें गड़ाए शिक्षा, रोजगार और सभ्य समाज के तौर तरीकों से कोसों दूर,बस अपने मैले और
फीके जीवन को ढो रहे थे।
आज सेवा भारती जोधपुर प्रांत स्वावलंबन प्रमुख श्री दिनकर
पारीक व क्षेत्रीय प्रशिक्षण प्रमुख श्री गोविंद कुमार जी के सात-आठ वर्षों के
प्रयासों से इन सभी परिवारों ने जीवन पटल पर मेहनत के कसीदे निकाल स्वाभिमान से
जीना सीख लिया है। फूल लगाने वाले माली को यह नहीं पता होता कि फूलों की खुशबू
कितनी दूर तक अपनी पहचान बनाएगी।
आठवीं कक्षा में पढ़ने वाला अनाथ राम, स्वयंसेवकों के
सहयोग से सरकारी योजनाओं का लाभ उठाकर, अपने हुनर से अपने भविष्य की दिशा तय कर रहा है। पढाई के
साथ ही गैराज में गाड़ियों की सीट बनाने में माहिर अपने काम से 7000 रु महीना कमा
रहा है। इसी बस्ती की सीमा फिजियोथैरेपिस्ट की ट्रेनिंग ले रही है, तो सुनीता बीए
करते हुए बच्चों को ट्यूशन पढा रही है।
गोविंद जी बताते हैं,अज्ञानता के अंधेरे में शराब के नशे में डूबे, दो वक्त की रोटी तलाशते इन बस्तियों के लोग बच्चों को
पढ़ाने के ख्याल से कोसों दूर थे। कार्यकर्ताओं के निरंतर प्रयासों से अब 250 से अधिक बच्चे नजदीक के सरकारी स्कूलों में पढ़ रहे हैं।
किशोरी केंद्रों में किशोरियों के प्रशिक्षण पर विशेष ध्यान देती श्रीमती जय विजय
चौधरी(तहसील अध्यक्ष,महिला मंडल
अनूपगढ) अपने सेवा कार्यों के दौरान बहुत करीब से बस्तियों में महिलाओं की स्थिति
में आए परिवर्तन की साक्षी बन रही है।
सेवा भारती स्वावलंबन केंद्र के माध्यम से 17 प्रकल्प यहां वर्षभर चलते हैं। जहां महिलाएं
सिलाई सीखते हुए, थैले, लंगोट, बंडिया,ऊं की पताकाऐं
निरंतर सिलाई कर रही है। सावन में राखियां
बनाकर तो दीपावली में दीप व लक्ष्मी गणेश बनाकर बस्ती की महिलाएं परिवार में
आर्थिक योगदान कर रही हैं।
यह कहानी शुरू होती है 8 वर्ष पहले, जब संघ के स्वयंसेवक दिनकर पारीक जी बस में अनूपगढ़ से दिल्ली जा रहे थे। तभी
उन्होंने खिड़की से दो मासूम बच्चों को कचरे के डिब्बे से कुछ खाने का सामान
निकालते हुए देखा और वे वहीं, बस से उतर गए। उनकी वेदना और इन बस्ती के लोगों के लिए कुछ
करने की चाहत ने एक लंबी सेवायात्रा को जन्म दिया। भजन संध्या और संस्कारशाला से
शुरू किया गया कार्य आज घर-घर में स्वावलंबन द्वारा सम्मान का उजाला कर रहा है।
दिनकर भैया व रामरत्न जी( तहसील अध्यक्ष अनूपगढ़) के
प्रयासों से इन बस्तियों में विधिक चेतना शिविर लगे, जिनसे इन परिवारों को पहचान मिली। चार बेटियों
को बोझ मानते विकलांग पवन जैसे 5 अन्य परिवारों को भी सरकारी योजनाओं का लाभ मिला। पुरुषों को कौशल विकास के अंतर्गत बार्बर
(नाई) की ट्रेनिंग दी गई। आज वे जेल के कैदियों, बीएसएफ के जवानों की तथा कुछ अपनी दुकान को खोल
कर लोगों की कटिंग कर सम्मान पूर्वक जीविका चला रहे हैं। विकलांग पवन ने भी हेयर
कट की छोटी सी दुकान खोली है।
तुम कदम तो बढ़ाओ रास्ते खुद ब खुद दिखाई देने लगते हैं।
सोमदत जी कचोरिया (जिला सह मंत्री, सूरतगढ़) बताते हैं कि, अपने बच्चों को स्कूल पढ़ने भेजेंगे, काम करते समय नशा
नहीं करेंगे और अपने अकाउंट में हर महीने एक हजार रूपये बचत करेंगे। इन तीनों
शर्तों को पूरा करने वाले कई युवाओं को हाथ ठेले बांटें गये। जिनमें ढोल बजाने
वाले, मोची का काम करने
वाले व प्लास्टिक की बोतल इकट्ठा कर मुश्किल से गुजारा करते राकेश, कालूराम,ओमजी, और पवन ढोली
शामिल है। श्रीमती भगवती जी पारीक
(सह विभाग
संयोजिका महिला मंडल श्रीगंगानगर विभाग) की पहल और विचार से ही आज ये युवा
स्वाभिमान से रेहड़ी (हाथ ठेला) लगाकर अपने परिवार को रोटी खिला रहे है। लोहा पीटकर जैसे तैसे गुजारा कर रहे गाड़ियां
लोहारों के किसान कार्ड बनवाए गए। जो अब
धान मंडी में, कृषि के उपयोगी
औजार बनाकर स्वाभिमान से जीवन यापन कर रहे है।
यदि मन में संकल्प सच्चा हो और मेहनत पूरी हो, तो वक्त बदलते
देर नहीं लगती। समाज का सहयोग और अच्छा मार्गदर्शन किसी की भी परिस्थिति बदलने के
लिए काफी है। जो लोग स्वयं दूसरों के सामने भोजन के लिए हाथ फैलाते थे उन्हीं
स्वावलंबी परिवारों ने वर्ष 2019 दिसंबर में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्राथमिक शिक्षा
वर्ग अनूपगढ में लगा तो 7
दिन तक 100 स्वयंसेवकों को
बड़े हर्षोल्लास से भोजन कराया। सारे भेदभाव भुलाकर समरसता की मिसाल कायम कर रही
है स्वावलंबन की ओर अग्रसर ये बस्तियां।
https://www.sewagatha.org/know_more_content1.php?id=2&page=297
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