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Friday, January 29, 2021

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती – न्यायालय

नई दिल्ली. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं हो सकती. किसी भी व्यक्ति की स्वतंत्रता उसके कर्तव्यों और अन्य नागरिकों के प्रति उसके दायित्वों के साथ संतुलित होनी ही चाहिए. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरोकारों के लिए न्यायालयों की टिप्पणियां बड़ा संदेश हैं. जो केवल एक धर्म, समूह, व्यक्ति के खिलाफ ही अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को सही मानते हैं, दूसरा वर्ग स्वतंत्रता का उपयोग करता है तो उन्हें समस्या होने लगती है.

हाल ही में धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के दो अलग-अलग मामलों में सर्वोच्च न्यायालय और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने कठोर टिप्पणी की. दोनों ही मामलों में न्यायालय ने याचिकाकर्ताओं (आरोपियों) को कोई भी राहत देने से इंकार कर दिया.

तांडववेब सीरीज को लेकर चल रहे विवाद के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्देशक अली अब्बास और दूसरे कलाकारों को अंतरिम प्रॉटेक्शन देने से इनकार कर दिया. न्यायालय ने निर्माताओं को अग्रिम जमानत देने और एफआईआर को रद्द करने से इनकार किया. किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाई जा सकती. ऐसी स्क्रिप्ट नहीं लिखनी चाहिए, जिससे भावनाएं आहत हों.

सुनवाई के दौरान अभिनेता जीशान अयूब ने  कहा,  मैं एक अभिनेता हूं. मुझसे भूमिका निभाने के लिए संपर्क हुआ था. इस पर पीठ ने कहा, ‘आपकी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता असीमित नहीं है. आप ऐसा किरदार नहीं निभा सकते हैं जो एक समुदाय की भावनाओं को आहत करता हो.

वहीं, दूसरे मामले में फारुकी और यादव की जमानत याचिकाओं की सुनवाई करते हुए मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ के न्यायमूर्ति रोहित आर्य ने अपने आदेश में कहा कि देश में अलग-अलग तबकों के बीच सौहार्द्र और भाईचारा बढ़ाने के प्रयास किया जाना चाहिए. एकल पीठ ने शीर्ष न्यायालय के एक पुराने निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता उसके कर्तव्यों और अन्य नागरिकों के प्रति उसके दायित्वों के साथ संतुलित होनी ही चाहिए.

दोनों आरोपियों की जमनत याचिकाएं खारिज करते हुए कहा, ‘मुकदमे के गुण-दोषों को लेकर संबंधित पक्षों की दलीलों पर अदालत कोई भी टिप्पणी करने से बच रही है. लेकिन मामले में जब्त सामग्री, गवाहों के बयानों और (पुलिस की) जांच जारी होने के चलते फिलहाल जमानत याचिकाओं को मंजूर करने का कोई मामला नहीं बनता है.न्यायालय ने कहा, ‘मामले में अब तक जब्त सबूत और सामग्री पहली नजर में इशारा करती है कि (विवादास्पद) स्टैंड-अप कॉमेडी शो की आड़ में वाणिज्यिक तौर पर आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रम में आरोपी द्वारा भारत के एक वर्ग के नागरिकों की धार्मिक भावनाओं को जान-बूझकर आहत करने के इरादे से अपमानजनक बातें कही गई थीं.

फारूकी, यादव और तीन अन्य आरोपियों को भारतीय दंड संहिता की धारा 295-ए (किसी वर्ग की धार्मिक भावनाओं को आहत करने के इरादे से जान-बूझकर किए गए विद्वेषपूर्ण कार्य) और अन्य सम्बद्ध प्रावधानों के तहत इंदौर पुलिस ने एक जनवरी की रात को गिरफ्तार किया था. शहर के एक कैफे में एक जनवरी की शाम आयोजित विवादास्पद हास्य कार्यक्रम के खिलाफ शिकायत पर दर्ज प्राथमिकी को लेकर यह कदम उठाया गया था. मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय से पहले इंदौर जिले की दो निचली अदालतें भी फारूकी और यादव की जमानत अर्जियां खारिज कर चुकी हैं.

उच्च न्यायालय के आदेश में बयानों के जिन अंशों का हवाला दिया गया है, उनमें भगवान राम और माता सीता के साथ गोधरा कांड को लेकर फारूकी के कथित तौर पर आपत्तिजनक चुटकुलों का जिक्र किया गया है. 

श्रोत - विश्व संवाद केन्द्र, भारत 

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