पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न का सिलसिला लंबे समय से जारी है. और अहमदिया समुदाय भी कट्टरपंथियों के अत्याचारों का शिकार है. पाकिस्तान में धार्मिक भेदभाव के नाम पर समुदाय को सताया जाता है. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पहले एक प्रोफेसर, एक कारोबारी, एक फार्मासिस्ट, 82 वर्षीय एक वृद्ध, एक अमेरिकी नागरिक और कुछ दिन पहले 31 वर्षीय एक डॉक्टर की हत्या कर दी गई. यह सूची बहुत लंबी है. ननकाना साहिब के मुर्ह बलुचान क्षेत्र में डॉ. ताहिर महमूद और उसके स्वजनों पर एक किशोर ने जुमे की नमाज के समय गोलियां बरसा दीं. पाकिस्तान में अहमदिया समुदाय पर बर्बर हमले आम बात है.
पिछले सप्ताह पेशावर के एक बाजार में एक अहमदी की दुकान को निशाना बनाया गया. इसी तरह ईशनिंदा के आरोपित एक अमेरिकी नागरिक की पेशावर की अदालत के कक्ष में हत्या कर दी गई. अगस्त में भी शहर में 61 वर्षीय अहमदी मुसलमान मीराज अहमद की मेडिकल स्टोर के पास हत्या कर दी गई. जबकि वह और उसका भाई पुलिस में लगातार शिकायत करता रहा कि उनके खिलाफ नफरत का ऑनलाइन अभियान चलाया जा रहा है.
पिछले माह पेशावर में एक सरकारी कॉलेज के प्राणीशास्त्र के प्रोफेसर नईमुद्दीन खट्टक की अंतरराष्ट्रीय शिक्षक दिवस के दिन हत्या कर दी गई. इसी महीने 82 वर्षीय महबूब अहमद खान की भी हत्या कर दी गई, जो अपनी बेटी के यहां गए थे. ये सभी हत्याएं पीड़ितों की धार्मिक आस्था के कारण हुई हैं.
उल्लेखनीय है कि पाकिस्तान में अहमदियों की जनसंख्या महज 0.22 फीसद है और इन्हें 1974 में इस वजह से गैर-मुसलमान घोषित कर दिया गया था कि वे अपने पंथ के संस्थापक मिर्जा गुलाम अहमद (1836-1906) को पैगंबर मानते हैं. पाकिस्तान में दशकों से सताए जा रहे अहमदी अब नेपाल जैसे देशों में पलायन कर रहे हैं.
श्रोत- विश्व संवाद केन्द्र, भारत
No comments:
Post a Comment