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Monday, December 13, 2021

औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक के इतिहास की साक्षी है काशी


काशी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज श्री काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर का लोकार्पण किया. उन्होंने बाबा विश्वनाथ का जलाभिषेक करने के साथ ही  नगर कोतवाल कालभैरव जी के दर्शन भी किये.

इस अवसर पर उन्होंने कहा कि हमारे पुराणों में कहा गया है कि जैसे ही कोई काशी में प्रवेश करता है, सारे बंधनों से मुक्त हो जाता है. भगवान विश्वेश्वर का आशीर्वाद, एक अलौकिक ऊर्जा यहाँ आते ही हमारी अंतर-आत्मा को जागृत कर देती है. विश्वनाथ धाम का ये पूरा




नया परिसर एक भव्य भवन भर नहीं है. ये प्रतीक है, हमारे भारत की सनातन संस्कृति का.! ये प्रतीक है, हमारी आध्यात्मिक आत्मा का.! ये प्रतीक है, भारत की प्राचीनता का, परम्पराओं का.! भारत की ऊर्जा का, गतिशीलता का..

आप यहाँ जब आएंगे तो केवल आस्था के दर्शन नहीं करेंगे. आपको यहाँ अपने अतीत के गौरव का अहसास भी होगा. कैसे प्राचीनता और नवीनता एक साथ सजीव हो रही हैं, कैसे पुरातन की प्रेरणाएं भविष्य को दिशा दे रही हैं, इसके साक्षात दर्शन विश्वनाथ धाम परिसर में हम कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि आततायियों ने इस नगरी पर आक्रमण किए, इसे ध्वस्त करने के प्रयास किए. औरंगजेब के अत्याचार, उसके आतंक का इतिहास साक्षी है. जिसने सभ्यता को तलवार के बल पर बदलने की कोशिश की, जिसने संस्कृति को कट्टरता से कुचलने की कोशिश की. लेकिन इस देश की मिट्टी बाकी दुनिया से कुछ अलग है. यहाँ अगर औरंगजेब आता है तो शिवाजी भी उठ खड़े होते हैं. अगर कोई सालार मसूद इधर बढ़ता है तो राजा सुहेलदेव जैसे वीर योद्धा उसे हमारी एकता की ताकत का अहसास करा देते हैं. और अंग्रेजों के दौर में भी, हेस्टिंग का क्या हश्र काशी के लोगों ने किया था, ये तो काशी के लोग जानते ही हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि गुलामी के लंबे कालखंड ने हम भारतीयों का आत्मविश्वास ऐसा तोड़ा कि हम अपने ही सृजन पर विश्वास खो बैठे. आज हजारों वर्ष पुरानी इस काशी से, मैं हर देशवासी का आह्वान करता हूं – पूरे आत्मविश्वास से सृजन करिए, Innovate करिए, Innovative तरीके से करिए.

मेरे लिए जनता जनार्दन ईश्वर का ही रूप है, हर भारतवासी ईश्वर का ही अंश है. इसलिए मैं कुछ मांगना चाहता हूं. मैं आपसे अपने लिए नहीं, हमारे देश के लिए तीन संकल्प चाहता हूं – स्वच्छता, सृजन और आत्मनिर्भर भारत के लिए निरंतर प्रयास. एक संकल्प जो आज हमें लेना है, वो है आत्मनिर्भर भारत के लिए अपने प्रयास बढ़ाने का. ये आजादी का अमृतकाल है. हम आजादी के 75वें साल में हैं. जब भारत सौ साल की आजादी का समारोह बनाएगा, तब का भारत कैसा होगा, इसके लिए हमें अभी से काम करना होगा.

आज का भारत अपनी खोई हुई विरासत को फिर से संजो रहा है. यहां काशी में तो माता अन्नपूर्णा खुद विराजती हैं. मुझे खुशी है कि काशी से चुराई गई मां अन्नपूर्णा की प्रतिमा, एक शताब्दी के इंतजार के बाद अब फिर से काशी में स्थापित की जा चुकी है.

उन्होंने कहा कि हर भारतवासी की भुजाओं में वो बल है, जो अकल्पनीय को साकार कर देता है. हम तप जानते हैं, तपस्या जानते हैं, देश के लिए दिन रात खपना जानते हैं. चुनौती कितनी ही बड़ी क्यों ना हो, हम भारतीय मिलकर उसे परास्त कर सकते हैं.

काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण, भारत को एक निर्णायक दिशा देगा, एक उज्जवल भविष्य की तरफ ले जाएगा. ये परिसर, साक्षी है हमारे सामर्थ्य का, हमारे कर्तव्य का. अगर सोच लिया जाए, ठान लिया जाए, तो असंभव कुछ भी नहीं.

काशी अहिंसातप की प्रतिमूर्ति चार जैन तीर्थंकरों की धरती है. राजा हरिश्चंद्र की सत्यनिष्ठा से लेकर वल्लभाचार्यरामानन्द जी के ज्ञान तक चैतन्य महाप्रभुसमर्थगुरु रामदास से लेकर स्वामी विवेकानंदमदनमोहन मालवीय तक कितने ही ऋषियोंआचार्यों का संबंध काशी की पवित्र धरती से रहा है.

बनारस वो नगर है, जहां से जगद्गुरू शंकराचार्य को श्रीडोम राजा की पवित्रता से प्रेरणा मिली, उन्होंने देश को एकता के सूत्र में बांधने का संकल्प लिया. ये वो जगह है, जहां भगवान शंकर की प्रेरणा से गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस जैसी अलौकिक रचना की.

यहीं की धरती सारनाथ में भगवान बुद्ध का बोध संसार के लिए प्रकट हुआ. समाज सुधार के लिए कबीरदास जैसे मनीषी यहाँ प्रकट हुये. समाज को जोड़ने की जरूरत थी तो संत रैदास जी की भक्ति की शक्ति का केंद्र भी काशी बनी.

काशी शब्दों का विषय नहीं हैसंवेदनाओं की सृष्टि है. काशी वो है – जहां जागृति ही जीवन है! काशी वो है – जहां मृत्यु भी मंगल है! काशी वो है – जहां सत्य ही संस्कार है! काशी वो है – जहां प्रेम ही परंपरा है.

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