राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कर्णावती में आयोजित स्वयंसेवक परिवार मिलन कार्यक्रम को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि स्वयंसेवक जो कुछ काम संघ में करते हैं, वह जानकारी परिवार को भी दें, ऐसी पूर्ण अपेक्षा है क्योंकि हम जो काम करते हैं, वह कर सकें, उसके लिए हमारे घर में जो माता-बहनें हैं उनको जो करना पड़ता है, वह हमारे कार्य से कई गुना ज्यादा कष्टदायक है.
उन्होंने कहा कि हमको जो कार्य करना है, वह मातृशक्ति के बिना हो ही नहीं सकता. हिन्दू समाज को गुण संपन्न और संगठित होना चाहिए और जब हम समाज कहते हैं तो केवल पुरुष नहीं, मातृशक्ति भी है. समाज यानि उसमें आपस में अपनापन होता है, उस अपनेपन के कारण उसकी एक समान पहचान होती है. तो समान पहचान के कारण जो लोग एकत्रित आते हैं वो सब अपने आप को समाज कहते हैं. जिसमें समान पहचान बताने वाले आचरण के संस्कार होते हैं. मैं हिन्दू हूँ, मैं सभी के श्रद्धा स्थानों का सम्मान करता हूँ, लेकिन अपने श्रद्धा स्थान के विषय में एकदम पक्का रहता हूँ. मैंने अपने सभी संस्कार कहां सीखे तो, अपने कुटुंब से, परिवार से और यह सिखाने का काम हमारी मातृशक्ति करती है.
हमको समाज का संगठन करना है. इसलिए अपना जो काम है, उसके विषय में सब कार्यकर्ताओं को अपने-अपने घर पर सब बताना चाहिए. गृहस्थ हैं, तभी समाज है. गृहस्थ नहीं है तो समाज नहीं है. क्योंकि आखिर समाज को चलाने का काम गृहस्थ ही करता है. अतः शाखा में संघ का काम करो, समाज में संघ का काम करो और अपने घर में भी संघ का काम करो क्योंकि आपका घर भी समाज का हिस्सा है. अपने देश के इतिहास में जहां-जहां कोई पराक्रम का, वीरता का, विजय का, वैभव का, सुबुद्धि का पर्व है, वहां-वहां आप देखेंगे कि उन सारे कार्यों को मन, वचन, कर्म से कुटुंब का आशीर्वाद मिला है. समाज संगठित होना यानि कुटुंब में इन संस्कारों का पक्का होना.
कुटुंब के साथ रहने के कारण हम सब लोगों के साथ रहना सीखते हैं. आजकल डिवोर्स का प्रमाण बहुत बढ़ा है, बात-बात में झगड़े हो जाते हैं. क्योंकि शिक्षा एवं संपन्नता के साथ साथ अहंकार भी आया, जिसके परिणामस्वरूप कुटुंब बिखर गया. संस्कार बिखर गए, इससे समाज भी बिखर गया क्योंकि समाज भी एक कुटुंब है.
मातृशक्ति समाज का आधा अंग है, इसको प्रबुद्ध बनाना होगा. इसका प्रारंभ हम अपने घर से करें. हम अपने परिवार के कारण हैं और परिवार, समाज के कारण है. परन्तु हम अपने समाज के लिए क्या करते हैं. यदि हम समाज की चिंता नहीं करेंगे तो न परिवार टिकेगा, न हम टिकेंगे. मैं रोज अपने लिए समय देता हूँ, कुटुंब के लिए समय देता हूँ, समाज के लिए कितना देता हूँ? हमें अपने परिवार के लोगों को, नई पीढ़ी को, समाज के लिए क्या करना चाहिए, यह सोचने के लिए संस्कारित करना होगा. बताना कुछ नहीं कि ऐसा करो, वैसा करो उसे सोचने दो, आज की पीढ़ी सक्षम है. वह प्रश्न करेगी तो प्रेम से अपनी धर्म, संस्कृति के बारे में बताना पड़ेगा.
हमारे व्यक्तिगत जीवन, कौटुम्बिक जीवन, आजीविका का जीवन और सामाजिक जीवन, जीवन के चारों आयामों में संघ झलकता है, ऐसा अपना कुटुंब चाहिए और कुटुंब के साथ परिवार जब ऐसा होगा, तब राष्ट्र परम वैभवशाली बनेगा और तब दुनिया को भारत के सिवाय चारा नहीं है. और भारत को हिन्दू समाज के सिवाय चारा नहीं है. और हिन्दू समाज को अपने गृहस्थों के कुटुंब के आचरण के सिवाय दूसरा चारा नहीं है. इस पवित्र संकल्प के साथ हम लोग आज से ही सक्रिय हो जाएं.
साभार - विश्व संवाद केन्द्र, भारत
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