जगदीशलाल आहुजा (लंगर बाबा) पद्मश्री से सम्मानित
देश के लिए गर्व की बात है कि हमारे देश में ऐसे लोग है जो अपनी सम्पत्ति बेचकर प्रतिदिन लंगर चलाते हैं और भूखे लोगों का पेट भरते हैं साथ ही प्रसन्नता की बात यह है कि वर्तमान केन्द्र सरकार ऐसे लोगों को ढ़ुंढ़कर देश के प्रतिष्ठित सम्मान से उनको सम्मानित कर रही है।
जगदीश लाल आहूजा को जब पद्म सम्मान मिलने की सूचना मिली तो वे आश्चर्यचकित होते हुए बोले : "अरे, एक ढ़ाबे वाले को इतना बड़ा सम्मान!"
स्वयं कभी भूखे रहने को थे मजबूर
जगदीश लाल आहुजा प्रतिदिन चंडीगढ़ के प्रसिद्ध अस्पताल पीजीआईएमएस के बाहर दाल, रोटी, चावल और हलवा बांटते हैं। इस काम से वे कभी छुट्टी नहीं लेते। वे प्रतिदिन 500-600 लोगों को भोजन कराते हैं। भोजन तैयार करने में उनकी धर्मपत्नी की भी बड़ी भूमिका होती है इसलिए लोग उन्हें ‘जय माता दी’ कहते हैं। लंगर बाबा के नाम से प्रसिद्ध जगदीश लाल आहुजा कभी स्वयं भूखे रहने को मजबूर थे। बचपन में अपनी आजीविका चलाने के लिए रेलवे स्टेशन पर नमकीन दाल बेचा करते थे।
अपने व्यवसाय के पैसे से चलाते हैं लंगर
1950 में वे चंडीगढ़ में एक रेहड़ी किराए पर लेकर केले बेचना शुरू किया। बाद में उनकी किस्मत ऐसी चमकी कि केले के व्यवसाय से वे करोडपति बन गए और लोग उन्हें केला किंग कहने लगे। व्यवसाय से जो भी पैसा उन्होंने कमाया उसी से वे जरूरतमंदों की भूख मिटा रहे हैं। पहली बार उन्होंने 1981 में अपने बेटे के जन्मदिन पर लंगर लगाया था। 2000 में वे बीमार हुए तो पीजीआईएमएस में भर्ती हुए। वहां उन्हें महसूस हुआ कि यहां आने वाले लोगों को खाना नहीं मिल पाता। इसके बाद उन्होंने अस्पताल के बाहर लंगर लगाने का निर्णय लिया, जो आज तक निरन्तर चला आ रहा है।
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