राजस्थान में सीकर जिले के दाता गांव के रहने वाले हैं सुंडाराम वर्मा (कुमावत)। 1971 में बी.एसी. करने के बाद भी उन्होंने अपनी जीविका के लिए खेती को चुना। उन्होंने नई तकनीक से खेती करनी शुरू की। इस तकनीक से वे खेती की नमी को रोकते हैं। इससे कम पानी में ही अच्छी फसल हो जाती है। यह तकनीक राजस्थान जैसे सुखे राज्य के लिए वरदान है। इसके बाद उन्होंने इसी तकनीक के सहारे जगह-जगह पौधे लगाने शुरू किए। किसी गोशाला, विद्यालय या अन्य सार्वजनिक जमीन पर वे पौधे लगाते हैं। पौधे लगाने से पहले वे उस जमीन की नमी को संरक्षित करते हैं। इसके बाद पौधे लगाते हैं और हर पौधे में केवल एक लोटा पानी डालते हैं।
उनका कहना है कि मानसून के बाद ही पौधे लगाने चाहिए। इससे पौधे को पानी पीने की आदत नहीं होती है और वह कम पानी में ही जीना सीख लेता है। अब तक वे 50,000 से अधिक पौधे लगा चुके हैं। इनमें ज्यादातर छायादार या इमारती लकड़ी वाले हैं। वर्मा ने राजस्थान की 15 फसलों की लगभग 700 से ज्यादा प्रजातियों को इकट्ठा कर उनका बारीकी से अध्ययन भी किया है। उनके इस अध्ययन को पूसा संस्थान (नई दिल्ली) ने भी मान्यता दी है। उन्होंने आदर्श फसल चक्र का भी निर्माण किया है, जिसमें किसान अपने एक ही खेत में 3 वर्ष में 7 फसलें उगा सकता है। कृषि में नई तकनीक अपनाने और शोध करने के लिए उन्हें 1998 में 'जगजीवनराम किसान सम्मान' भी मिल चुका है।
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