पद्मश्री डॉ. दयाप्रकाश सिन्हा

'रक्त अभिषेक' में उन्होंने सेनापति पुष्यमित्र के माध्यम से हिंसा और अहिंसा पर बहस को आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। इसमें उन्होंने हत्या और वध के अंतर को बताया है। किसी को व्यक्तिगत हित के लिए मारा जाए, उसे हत्या कहते हैं जबकि किसी को सामूहिक हित के लिए मारा जाए, उसे वध कहते हैं। डॉ. सिन्हा को 'संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार' भी मिल चुकाहै। वे संस्कार भारती के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और 'भारत भवन', भोपाल के निदेशक भी रहे हैं।
No comments:
Post a Comment