पद्म सम्मान -२०२०
पद्मश्री उषा चौमर
उषा चौमर जिसकी पहचान अब तक छुपी हुई थी लेकिन अब उसे पूरी दुनिया पद्मश्री उषा चौमर के नाम से जानती है। राजस्थान के अलवर की रहने वाली उषा दो दशक तक सर पर मैला ढोने का काम कर चुकी हैं और आज जरूरतमंद और कामकाजी गरीब महिलाओं के लिए आशा की किरण बनकर उभरी है।
उषा को नही पता था - पद्मश्री क्या होता है?
25 जनवरी को जब गृह मंत्रालय दिल्ली से फोन के द्वारा उषा को जब पद्म सम्मान की सूचना दी गई तो उन्हें पद्मश्री क्या होता है, इसकी जानकारी नहीं थी मगर जब उन्हें अधिकारियों ने इसके बारे में बताया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उषा चौमर का विवाह 10 साल की उम्र में ही हो गया था 2003 में उषा अन्य महिला साथियों के साथ सड़क के किनारे सफाई कर रही थी तभी सुलभ संस्थान के संस्थापक डॉ बिंदेश्वर पाठक ने उन लोगों को देखा और सुलभ संस्थान के लिए काम करने की बात कही, फिर अलवर में नई दिशा नामक एक संस्था की शुरुआत की गई जिसमें महिलाओं को पापड़, मोमबत्ती आदि बनाने के साथ सिलाई और ब्यूटी पार्लर का प्रशिक्षण दिया गया। इसमें जो भी सामान तैयार होता था उसे सुलभ संस्थान खरीद लेता था। इस तरह उषा अपनी महिला साथियों के साथ इस संस्थान से जुड़कर काम करना शुरू किया।
आज नई दिशा से 115 महिलाएं जुड़ी हैं यह लोग अनेक चीजें तैयार करती हैं और अब बाजार में ही उनकी खपत हो जाती है हर महिला प्रति माह 20000 से 25000 रुपए कमा लेती है उषा को 2007 में सुलभ इंटरनेशनल सोशल सर्विस ऑर्गनाइजेशन का अध्यक्ष बनाया गया इसकी नाते वे 5 देशों की यात्रा कर चुकी हैं और अब उन्हें देश का प्रतिष्ठित सम्मान पद्मश्री से सम्मानित किया जा चुका है।
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